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________________ किरण ] दक्षिण भारत में जैनधर्म का प्रवेश और विस्तार मन्दिर की छत में संग्राम के दृश्य से अंकित एक पत्थर लगा है, जिसमें किला बना हुआ है, धनुषवाण चल रहे हैं। नगर और कोट का ऐसा सजीव अंकन किया गया है, जो दर्शकों के ध्यान को अपनी ओर आकृष्ट किये बिना नहीं रह सकता। श्रवणगुडी में एक जैनमठ के पास पड़े हुए पाषाणों में एक घुड़सवार अपने भाले से एक पियादे के तलवार के बार को रोकता हुआ दिखलाया गया है। कई चित्र तो शान्ति के मूर्तिमान प्रतीक हैं। ऐहीले और इलोरा के जैनमन्दिरों के मानस्तम्भ भी मिलते हैं। जैन मानस्तम्भों के विषय में विलहौस सा० ने लिखा है : "The whole capital and canopy of Jain pillors are a wonder of light, clegant, highly decorated stone work; and nothing can surpass the stately grace of these beautiful pillors, whose proportions and adaptations to surrounding scenery are always perfect, and whose richness of decoration never offends." । अर्थात् जैन स्तम्भों की आधार शिला तथा शिविर बारीक, सुन्दर और समलंकृत शिल्पचातुर्य की प्राश्चर्यजनक वस्तु हैं। इन सुन्दर स्तम्भों की दिव्य प्रभा से कोई भी वस्तु समानता नहीं कर सकती। ये प्राकृतिक सौन्दर्य के अनुरूप ही बनाये गये हैं। नकासी और महत्ता इनकी सर्वप्रिय है। ___ कला परिपूगी मन्दिर और मूर्तियों की प्रशंसा भी अनेक विद्वानों ने मुक्त कराठ से की है। इस तरह जैनधर्म दक्षिण भारत में अपना प्रभुत्व १३ वीं सदी तक स्थापित किये रहा। शंकराचार्य, शवानुयायी राजा एवं अन्य धार्मिक विद्वेषों के भयंकर मौंके लगने पर भी इस धर्म का दीपक आज भी दक्षिण में टिमटिमा रहा है।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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