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________________ किरण १ ] गुप्तकालीन जैनधर्म शिखर पर पहुँची थीं। गायन तथा नृत्य कला को बड़ा ही प्रोत्साहन मिला था। सभी गुप्त राजा विद्या के बड़े प्रेमी थे और उन्होंने नालंदा के विश्वविद्यालय की वृद्धि के लिये अथक परिश्रम किया । युवानत्संग का कथन है कि उक्त स्थान में १०,००० विद्यार्थी विद्या ध्ययन करते थे। उनके परिचालनार्थ बड़ी-बड़ी जागीरें लगी हुई थीं। दुनियां भरके अनेकों शाखाओंों को जैसेकि ज्योतिष, तर्क, न्याय, वैद्यक, गणित, भूमिति, संगीत, विज्ञान, व्याकरण, अलंकार, साहित्य और सभी धर्मो का दर्शन शास्त्र श्रादि श्रध्ययन तथा पठन-पाठन वहाँ पर हुआ करता था । इस प्रकार इन सभी शास्त्रों में हिन्दुस्तान ग्रीकों की अपेक्षा कहीं अधिक अग्रेसर था नवरत्नों का उदय इसी काल में हुआ था। कहने का अभिप्राय यह हैं कि उस काल में हिन्दुस्तान सभी प्रकार से उन्नत दशा में था, सब कहीं " रामराज्य" था। उस कालकी तुलना स के इतिहास के परिक्लिन तथा रोम के इतिहास के ऑगस्टस के साथ करने लायक है और यही कारण है कि इतिहास लेखक इस युग को "स्वर्ण युग" कहते हैं गुप्तकाल के राजा: । विक्रमादित्य के नामसे ' इसिंग ने लिखा है, गुप्तकाल के श्रादि पुरुष का नाम महाराज गुप्त था । वह पहले पटना नज़दीक के किसी छोटे गांव का सदर था और इसके पुत्र का नाम घटोत्कच गुप्त था । इसने कुछ कहने लायक काम नहीं किया। उसका पुत्र चंद्रगुप्त नाम से प्रसिद्ध है । इसीने अपना छोटा राज्य साम्राज्य में परिवर्तित किया || लिच्छवी कुलकी कन्या से ब्याहने के कारण इसका जीवन भिन्न दिशा में परिणत हुआ । समुद्रगुप्त उसका लड़का था, जिसकी तुलना नेपोलियन से की जाती है । इसने बड़ा ही साम्राज्य विस्तार किया। विद्या, कला, शास्त्र को उत्तेजन देकर भारत का स्वर्णभूमि नाम सार्थक किया । समुद्रगुप्त ने अपने कार्य का बयान इलाहाबाद के शिला लेखों पर अंकित कर रक्खा है. जिसके कारण आज उपयुक्त बातों का विश्वसनीय पता चलता है। इसके पीछे दूसरा नाम विक्रमादित्य गद्दी पर बैठा जिसके समय में गुप्तकाल वैभव के शिखर पर था ! राज्य की व्यस्था बहुत अच्छी थी; प्रजा सुखी थी और इसी कारण से कर्तृत्व की सभी शाखाओं, उपशाखाओं ने चरम सीमा पायी थी। चंद्रगुप्त के अनंतर उसके पुत्र कुमारगुप्त ने दीर्घ काल तक राज्य किया और अपनी गद्दी स्कंदगुप्त को सौंप दी। इसने समरांगण में पुण्यमित्र से लड़ते २ वीर गति पायी। इसके बाद साम्राज्य ट्रंक ड्रंक हुआ । तिसपर हूणों की टोलियों ने भारत में प्रवेश किया और वैभवशाली गुप्तवंश मटियामेट हो गया । ३३ प्रमुखता से गुप्त राजाओं का झुकाव यद्यपि वैदिक धर्मों की और था, फिर भी उन्होंने धर्म की आड़ में बौद्ध या जैन धर्मों पर अत्याचार नहीं किया। सारे धर्म साथ-साथ चल रहे थे । पक्षपात, असहिणुता आदि दुर्गुण नहीं के बराबर थे। इस कालका इतिहास लिखने की
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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