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________________ [ भाग १५ ......... भास्कर अङ्गबाह्यश्रुत (उपलब्ध) का पूरा पूरा उपयोग किया था", पयन्नों के काल की अन्तिम उत्तरावधि अधिक से अधिक १०० ई० पूर्व मानी जा सकती है। अतः यह असंभव है कि चाणक्य और चन्द्रगुप्त कथानक का जो प्राचीन रूप पयन्नों में निहित है वह ईस्वी सन् के प्रारंभ के पश्चात् का हो। चंकि दिगम्बरों ने आवश्यक, उत्तराध्ययन तथा पयनों को अप्रमाणिक एवं अप्रासंगिक मान कर अपने आगम से बहिष्कृत कर दिया अतः संभव है चाणक्य को जैनमुनि का रूप देना श्वेताम्बरों की ही कृति हो ।* यदि यह बात ठीक भी हो तो भी हमें इस बात का समाधान करना फिर भी शेष रह जाता है कि तब चाणक्य सम्बंधी-अनुश्रति की वे दो धाराएँ क्यों कर हुई, जिनमें से एक अावश्यक और उत्तराध्ययन से संबंधित है और दूसरी पयन्नों से, और इन दोनों के बीच इतने अन्तर क्यों लक्षित होते हैं। १. कुन्दकुन्द, और उमास्वामी की रचनाओं का समावेश दिगम्बरों के २ रे वेद-द्रव्यानुयोग में होता है। १५ यह विश्वास करना कठिन है कि उभास्वार्ग के तत्वार्थाधिाम सूत्र जपा जैन सिद्धान्त एवं याचार का सारसंकलन: जो जैनधर्म में ही स्थान रखना हैं जैग्गा कि बौद्धधर्म में विशुद्धिमग दिसम्बर मादायक द्वारा अपने अङ्ग एवं अमायसी , काका आमा भली प्रमः सुनिश्चित करने में भी पूर्व मचा जा सका हो। ___* या कथन सत्य नहीं मालम होता। जैन अनुश्रति में सर्वत्र चाणक्य अपने अन्तिम जीवन में जैन मुनि के रूप में मिलते हैं। ने० ने उन्हें जैन मुनि का रूप नहीं दिया वल्कि श्व० धारा के लिपि बह होने से लगभग ५०० वर्ष पूर्व लिपिबद हुई जैनधारा के कथा ग्रन्थों में जैसा कि पर देग्य, पाये :-वे समाधि पर द्वारा मन को प्रात होने वाले अ जैन मुनि के रूप में ही चित्रित हुए हैं। (ज्यो. प्र. ज.)
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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