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________________ किरण] एक साम्प्रदायिक चित्रण कोई उपाय करने की सूचना प्राप्त करने के लिये, पीछे के दरवाजे से अन्तःपुर में जाना चाहते हैं। किन्तु शस्त्रधारी द्वारपाल उन्हें पीछे हटा देता है। द्वारपाल की मुग्वमुदा खूब उत्तेजित है और कड़ाई के साथ निषेध करता हुआ उसका हाथ कठोर दिखाई देता है। पीछे हटते हुए नमाचार्य को उसके सामने अजीव दृष्टि से विनम्रता पूर्वक कुछ कहते हुए तथा उतावले ढंगों से चले जाते हुए बताया है। इस चित्र परिचय को समाप्त करते हये मुनि जी ने लिखा है कि पश्चिम भारत की चित्रकला के इतिहास में इन पट्टिकाओं के चित्र अपने को एक महत्त्व के प्रकरगा की मूल्यवान सामग्री देते हैं। जिस 'मुद्रित कुमुदचन्द्र प्रकरण' का मुनि जी ने उल्लेख किया है उसे भी हमने देखा है। इन चित्रों और उक्त प्रकरण को देखने से हमें तो उनमें ऐनिहामिकता से अधिक साम्प्रदायिकता का ही चित्रण किया प्रतीत होता है। यह तो हन नहीं कह सकते कि ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं होगी, किन्तु उक्त घटना को आवश्यकता से अधिक तूल अवश्य दिया गया है। और लेखनी तथा कूर्विका बनाने वालों ने, बगर इस व त का प्रयत्न किया है कि जिससे दिगम्बर और उनके प्राचार्य लोगों की दृष्टि में गिरें और श्वेताम्बर तथा उनके प्राचार्य लोगों की दृष्टि में उठें। इसीने चित्र तथा प्रकरशा में की अनेक बातें ऐसी निबद्ध कर दी गई हैं जो दिगम्बर परम्पग के तथा एक साधु के प्रतिकूल हैं। लोगों की दृष्टि में गिरानेवाली बातें इस झगड़े का प्रारम्भ दिगम्बरीचार्य की ओर से हुया बनलाया गया है। दिगम्बाचार्य का एक शिष्य देवसूरि की सभा में जाकर अंट संट बकना है और देवदि अने पद के योग्य क्षमा भाव प्रदर्शित करते हैं। फिर कुमुदचन्द्र पर तम्पर (भुलंग) लोगों की गोष्ठी में एक वृद्धा आयिका को न चाने का अभियोग लगाया गया है। वह अार्षिका देवसूरि को सभा में जाकर कहती है कि कुमुद चन्द्र ने मेरा अपमान किया है। इमो पर शास्त्रार्थ की चर्चा चलती है। देवसूरि की ओर से एक दूत कुमुदचन्द्र की सभा में माना है और वहां दोनों में खूब झड़प होती हुई बतलाई गई है। आगे दिगम्बराचार्य को घूस देने में चतुर बतलाते हुए कहा है उसने घस देकर सभासदों को और गजा के आदमियों को वश में कर लिया। शास्त्रार्थ में भी इसी तरह की बिडम्बना प्रदर्शित की दिगम्बराचार्य का पालकी पर बैठकर चलना, आगे शस्त्रधारी भटों का चलना, शिष्यों से हवा करवाना, विटों के साथ सहवास करना और आर्यिका वृद्धा को सभा में नचाना
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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