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________________ पत्रकार स्व. श्री देवकुमार जैन [ले०-श्रीयुत् बा० रामबालक प्रसाद साहित्यरत्न ] स्व० श्री देवकुमार जैन पारा शहर (जि० शाहाबाद) के एक धर्मनिष्ठ विद्वान् व्यक्ति थे। जिस जेन परिवार में उनका शुभ जन्म हुआ उस पर वीणापाणि सरस्वती तथा हरिवल्लभा लक्ष्मी की समान कृपा थी। एक ओर जमीन्दारी तथा वाणिज्य से प्रचुर धनागम था, तो दूसरी ओर स्वाध्याय और सेवा के सुयश से दिदिगन्त मदमत्त हो रहा था। लक्ष्मी की आराधना कभी साध्य नहीं बनी, साध्य तो मानव मंगल था; जिपके लिये अन्तिम क्षणों तक वे व्यग्र रहे। इस मानव मंगल की साधना उन्होंने कई प्रकार से की, पर पत्रकार के रूप में उन्होंने जो अमूल्य सेवा की उसके लिए प्राणीमात्र चिर ऋणी रहेगा। इस छोटे से निबन्ध में उनके पत्रकार-जीवन पर यत्किचित् प्रकाश डालना अभीष्ट है। ___ पत्रकार लोक-चक्षु और लोक-जिला है। वह संसार के लिए देखता और संसार के लिए बोलता है; वह जो स्वाध्याय करता है वह भी परहित के लिए। वह ठीक मुख के समान है जिसपर समाज रूपी अंगों का पालन-पोषण और संगठन का दायित्व रहता है। वह भूत का विश्लेषक, वर्तमान का संस्थापक और भविष्य का अग्रदूत है। उसके विशाल हृदय में शान्ति का सरोवर, जिला में अग्नि स्फुलिङ्ग और लेखनी में कठोर तीक्ष्णता होती है। देवकुमार बाबू इन्हीं गुणों से अलंकृत एक यशस्वी पत्रकार उस युग में हो चुके हैं, जब भारत की पत्रकारिता शैशवावस्था में थी। उन्होंने सन् १८६५ से जैन गजट नामक एक मासिक पत्र का सम्पादन शरु किया जो श्रारा निवासी श्री राजेन्द्रकुमार द्वारा प्रकाशित तथा समय समय पर लखनऊ के विभिन्न प्रेसों (जैन प्रेस, लखनऊ प्रिन्टिङ्ग प्रेस, दामोदर प्रेस श्रादि) में मुद्रित हुआ करता था। इसका वार्षिक मूल्य २) तथा अंग्रेजी के एक पूरक अंश के साथ २॥) था। सरकार द्वारा यह रजिस्टर्ड पत्रिका थी। जैसा कि इसके नाम से ही ज्ञात होता है समस्त भारत के जैन मतावलम्बियों को एक सूत्र में संगठित करना और उनको उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करना इसका मुख्य ध्येय था। भर्तृहरि का निम्नलिखित प्रसिद्ध श्लोक इस पत्रिका का श्रादर्श वाक्य था परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते । सजातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् ॥ भागे चलकर (सन् १६०६ के लगभग) इस पत्रिका के मुख पृष्ठ पर निम्नलिखित एक दोहा भी छपने लगा जैन गजट जग में करे धर्म सूर्य प्रकाश । करै भविया व्यर्थ व्यय भाविक तमको नाश ॥
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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