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________________ १२४ भास्कर | भाग १७ रस का परिपाक भी इसमें रसशास्त्र के नियमानुसार हुआ है । कवि ने प्रत्येक रस विभाव, अनुभाव और संचारी भावों का सुन्दर विश्लेषण किया है। शान्तरस, वात्सल्यरस, करुणरस और वित्रम्भशृङ्गार रसों का वर्णन मुख्य रूप से किया गया है। सीमित मर्यादा में स्वस्थ वातावरण को उपस्थित करने वाला विप्रलम्भशृङ्गार विशेष रूप से राजुल के विलाप वर्णन में आया है 1 कथावस्तु निम्न है जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के अन्तर्गत सौराष्ट्र देश में द्वारावती नाम की नगरी श्री इस नगरी में राजा समुद्रविजय राज्य करते थे। ये बड़े धर्मात्मा, पराक्रनशानी और शूरवीर थे। इनकी रानी का नाम शिवदेवी था। इसके का नाम नेमकुमार रखा गया। नेमिकुमार बचपन से ही होनहार, धर्मात्मा और पराक्रमशानी थे। इन्हीं के वंशज कृष्ण, बलभद्र थे। ये बड़े पराक्रमशाली और शुरवीर थे । कृष्ण ने अपने भुजबलद्वारा कंस, शिशुपाल और जरासंध जैसे ती राजाओं का क्षण भर में संहार कर दिया था। इनके सोलह हजार रानियां थीं, जिनमें आठ रानियाँ पर महिपी के पद पर प्रतिष्ठित थीं । एक समय नेमिकुमार के पराक्रम को सुनकर कृष्ण के मन में ईयी उत्पन्न हुई तथा इन्होंने 3 : शक्ति की परीक्षा करने के लिये उनको अपनी सभा में आमन्त्रित किया । नेमिकुमार यथासमय कृष्ण की सभा में उपस्थित हुए और अपनी कनिष्ठा अंगुली पर जंजीर डालकर कृष्ण आदि को भुला दिया। कृष्ण को बहुत आश्चर्य हुआ । फलतः उन्होंने अपनी पटरानियों को मिस्वामी के घर भेजा। रानियों ने चारों तरफ से मिस्वामी को घेर लिया और विवाह करने के लिये प्रतिज्ञाबद्ध किया । कृष्ण ने नेमस्वामी का विवाह कुनागढ़ के राजा उग्रसेन की कन्या राजुलमती से निश्चित कराया। वहाँ पर इन्होंने अपनी कुटनीति से पशुओं को पहने से कैद करवा दिया था। जिससे नेमिस्वामी के मयवरात के वहाँ पहुंचने पर अग्योनी के पश्चात टीका को जाते समय पशुओं की चीत्कार नेमिस्वानी को सुनाई दी। नेमि स्वामी को चोकार से वैराग्य उत्पन्न हो गया और इन्होंने पशुओं को कैद से छुड़ाया । दीक्षा ग्रहण कर गिरनार पर्वत पर नेमिस्वामी तपस्या करने लगे । राजुलमती अपने पिया नेमिस्वामी को गिरनार पर्वत पर गया हुआ जान तथा दीक्षा ग्रहण कर तपस्या में संलग्न हैं, समाचार सुनकर विलाप करने लगी । मातापिता के द्वारा बार-बार समझाये जाने पर भी अन्य के साथ विवाह करने को तैय्यार न हुई । गिरनार पर्वत पर जाकर दीक्षा ग्रहण कर तप तपने लगी। तप के प्रभाव से सोलहवें स्वर्ग में नांग नामक देव हुई । नेमिस्वामी आठ कर्मों को नाश कर मोक्ष पधारे ।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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