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________________ करण २ 1 जन सिक्के हुआ था । जैन शास्त्रों में इसका उल्लेख नरवाहन, नरसेन, नहवाण आदि रूपों में किया गया है । इसका एक विरुद भट्टारक आया है, जिससे इसका जैन होना स्वतः सिद्ध है 1 नहपान के सिक्के बहुलता में अभी तक नहीं मिले हैं। कनिंघम साहब को इस राजा का ताँबे का एक सिक्का मिला था । उस पर एक ओर वज्र और ब्राह्म अक्षरों में नहपान का नाम तथा दूसरी ओर घेरे में अशोक वृक्ष है । अतएव भूमिकस और नहपान के सिक्के जैन हैं 1 नहपान के राजत्व काल के अन्तिम वर्षो में आन्ध्रवंशी गोतमीपुत्र शातकर्णी ने शकों के पहले क्षत्रप वंश का अधिकार नष्ट कर दिया था और नहपान के चाँदी के सिक्कों पर अपना नाम लिखवाया था। ऐसे सिक्कों पर एक ओर सुमेरुपर्वत और उसके नीचे साँप तथा ब्राह्मी अतरों में “रात्री गोतम पुत्रस सिरि सात कणिस " लिखा है। दूसरी ओर उच्चयिंगी नगरी का चिह्न है । इस राजा ने स्वयं अपने भी सिक्के बनवाये थे, इन सिक्कों पर इसने एक और राजा का सुख और ब्रह्म अक्षरों में "रामो गोतमिपुतस सिग्यियसातकणिस " लिखा है। दूसरी ओर उज्जयिनी नगरी का चिह्न सुमेरु पर्वत, साँप और दाक्षिणात्य के ब्राह्मी अक्षरों में प गोतम पुत्रष हिसयत्र हातकरिणप" लिखा है 1 गौतमीपुत्र शातकर्णी के सिक्कों में जैन प्रतीक हैं। यह राजा पहले वैदिकधर्मानु यायी था, परन्तु अपने पिछले जीवन में इसने जैनधर्म ग्रहण कर लिया था 1 नासिक के शिलालेख में इसे अशिक, अश्मक मूलक, सुराष्ट्र, कुकुर, अपरान्त, अनूप विदर्भ और अरावन्ती का शासक बताया है। इसका राज्यकाल ई० १००-४४ है । इसका जैन गृहस्थ के व्रतों को पालन करने का भी उल्लेख मिलता है । दक्षिणापथ के सिक्कों में अन्यजातीय राजाओं के सिक्क सबसे पुराने हैं। किसी समय आन्ध्र राजाओं का साम्राज्य नर्मदा नदी के दक्षिणी किनारे से समुद्रतट तक था। इसलिये मालव, सौराष्ट्र, अपरान्त श्रादि भिन्न-भिन्न देशों में भी आन्ध्र राजाओं ने भिन्न-भिन्न सिके प्रचलित किये थे । आन्ध्र देश - कृष्णा और गोदावरी ११७ 1 Journal of the Bihar and Orissa Research Society Vol. 16, P. 289 २ राजपूताने का इतिहास भाग १ पृ० १०३ ३ भरुयच्छेण्यरे नहत्राणां राया कोससमिद्धी- आवश्यक सूत्र भाग्य | 4 Rapson British Museum Coins P. 68 - 70 Nos 253-54, P. 45, N. 178 ५ संक्षिप्त जैन इतिहास द्वितीय भाग, द्वितीय खंड पृ० ६१-६६
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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