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________________ ६४ भास्कर [ भाग १७ प्रायः राजा की अध्यक्षता में हुआ करते थे । राज सभाओं में पंडितों का जमघट लगा रहता था और उनका एवं राजा का निष्पक्ष निर्णय अंतिम निर्णय माना जाता था । बौद्धों के प्राबल्यकाल में उनसे जैनाचार्यों के शास्त्रार्थ होते थे फिर चैत्यवासियों एवं सुविहितों में, दिगम्बर श्वेताम्बरों में भी राज सभा में कई बार शास्त्रार्थ हुए, जिनका उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में पाया जाता है। इनमें मल्लवादि का बौद्धों से, जिनेश्वरसूरि का पाटण के दुर्लभराज की सभा में चैत्यवासियों से, वादिदेवसूरि का दि० कुमुदचन्द्र और नितिरि का पृथ्वीराज चौहान की सभा में पद्मप्रभाचार्य से शास्त्रार्थ हुआ था, वह विशेष रूप से उल्लेख योग्य है । जैनाचार्यों के प्रति आदर भाव रखने के साथ-साथ कई नरेशों ने उनके उपदेश से अपने साम्राज्य में सारी उद्घोषणा करवाई, कइयों ने जैन मंदिरों को दान दिया, ध्वजा कलशादि रोपण करवाये अर्थात् विविध प्रकार से जैन धर्म की महिमा बढ़ाई व अपनी श्रद्धाभक्ति प्रकट की, जिनका उल्लेख भी ग्रन्थों, प्रशस्तियों व शिलालेखों में पाया जाता है । जैनाचार्यो को राजाओं ने पट्टे परवाने भी दिये हैं और उनसे पारस्परिक पत्र व्यवहार भी होता रहा है, पर वे पुराने काग़जात में सावधानी व उपेक्षा के कारण बहुत कुछ नष्ट हो गये हैं। वर्तमान में सम्राट अकबर से पहले के किसी भी राजा व बादशाह के दिये हुये फरमान, पट्टे, परवाने व पत्र मूल रूप में प्राप्त नहीं हैं । इसके बाद के भी ऐसे बहुत से कागजात जिन्हें वे दिये गये थे, उनके पट्टधरों के पास या भंडारों में पड़े रहने के कारण अज्ञान अवस्था में पड़े हुए हैं। जिनके पास हैं वे उनका महत्त्व के नहीं समझते या संकुचितता के कारण बहुत व्यक्ति तो उन्हें किसी विद्वान तक को दिखाते नहीं । हमने कुछ इधर उधर से थोड़े से कागजात संग्रह किये हैं जिनको प्रकाश में लाने का श्रीगणेश इसी लेख द्वारा हो रहा है । दि० भट्टारकों के के पास भी ऐसी बहुत कुछ महत्वपूर्ण सामग्री होगी। जिनका प्रकाश में लाने की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित करता हूं । Satara राज्य की स्थापना व उत्कर्ष में जैनों का गौरवपूर्ण स्थान रहा है । फलतः वहां के नरेश जैनाचार्यों के प्रति विशेष आदर रखें यह स्वाभाविक ही है। यहां श्वे खरतरगच्छ, उपकेशगच्छ व लोकागच्छ के श्रीपूज्यों की गद्दियां हैं। जिनमें से खरतर - गच्छ बातों का ही सर्वाधिक प्रभाव रहा है। राज्यस्थापना से लेकर करीब १५० वर्षो तक मंत्री आदि उच्च पदों पर ओसवाल बच्छावत वंश के व्यक्ति रहे हैं, वे खरतरगच्छ अनुयायी थे और विद्वत्ता आदि की दृष्टि से खरतरगच्छ के आचार्य व यतिगण बहुत
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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