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________________ भास्कर [भाग १७ अाजकल दिन में जाने में भी भय लगता है। काल की गति विचित्र है । यही दुर्दशा भटकल की है। इस समय भटकल में केवल दो मन्दिर हैं। बड़े मन्दिर में तो मूर्ति ही नहीं है । हाँ, छोटे मन्दिर में पाँच मूर्तियाँ हैं। अब विज्ञ पाठकों का ध्यान वर्तमान दक्षिण कन्नड जिला की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ, जो कि पूर्व में तौलव का ही एक मुख्य भाग रहा। श्रोडेय, चौट, बंग आदि जिन जैन पालेयगारों का उल्लेख ऊपर कर पाया हूँ उनकी राजधानियाँ इसी निले के भिन्न-भिन्न स्थानों में वर्तमान हैं, जिनके वंशज उन्हीं राजधानियों में तैलरिक्त निर्वाणान्मुख प्रदीप की तरह कान्तिहीन हो अपना समय काट रहे हैं। बल्कि भटकल एवं गेरुसोप्पे में शासन करने वाली भैग देवी और चेन्न भैरा देवी नाम की सहोदरियाँ भी कारकल के प्रांडेयर की ही वंश जा हैं ! अब क्रमसे उपयुक्त जैन पालेयगारों का परिचय नीचे दिया जाता है । बंगवंश दक्षिण कन्नड जिले में शासन करनेवाले जैन पालेवगारों में बंगों को तीलब में अग्रस्थान प्राप्त था। उन्हें वह गौरव आज भी पूर्ववत प्राप्त है। इस वंश के ई० स. ११.५७ से पूर्व का कोई इतिहास अभी तक उपलब्ध नहीं हया है। बंगों के मन इतिहास के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। इसलिये विवादास्पद विषयों को छोड़कर ई० म० ११५ - ( शा० मं० १०६) से ही इस वंश का संक्षिप्त इतिवन यहाँ पर दिया जा रहा है। बंगराजा वीरनरसिंह ( ई० म० ११५७-१२०८) गंगचंगी गजा चन्द्रशे वर गंगवादि के अन्तर्गत एक छोटे गज्य में जब गत कर रहा था तब होयमन गजा विष्णवर्धन ने इसके साथ युद्ध किया और इम बुद्ध में गजा चन्द्रशेम्बर मारा गया। इममे उसका गन्य होयमलों के अधीन हुआ। होयमन नरेश विष्णुवर्धन के, मृत्य पर्यन्त चन्द्रशेवर के मंत्री कृष्णप्प, करणीक ( कारिन्दा ) वेंकप्प, तिम्मण अादि चन्द्रशेग्वर की गनी, गजकुमार श्रादि ग अपरिवार के साथ दीर्घकालतक मलेनाद ( जंगल प्रदेश ) में छिपकर दिन काट रहे थे। विष्णुवर्धन के मरणोपरान्त वे घाटी उतर कर बंगवाडि में चले आये। यहाँ पर श्राते समय वे पुरोहित, मुनार, द जाम, दर्जी, धोवी श्रादि अपने कुल परिवार को माथ ही ले आये; इतना ही नहीं, कुलदेव सोमनाथ और धर्मदेव शान्तीश्वर की प्रतिमा को भी। यहाँ पर नेभावती नदी के तट में विस्तृत एवं चित्ताकर्षक मैदान को देखकर वे बहुत प्रमन्न हा और कुछ दिन यहीं पर ठहर गये। इस बीच में यहाँ पर जो एक विचित्र घटना घटी श्री वह इस प्रकार कही जाती है । एक दिन हजाम राजकुमार की हजामत बनाकर अपने एक अौजार को भूल से उसी जगह छोड़कर चला आया। वाद जब उसे इस बात की याद आयी तब वह लौटकर पाकर देखता है कि वहाँ पर उसका औजार तो नहीं था। हाँ, औजार के बदले में उसने उस जगह पर एक
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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