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________________ तौलक के जैन पालयगार - नरेश [ले० - श्रीयुत पं० के० भुजबली शास्त्री, विद्याभूषरण मूढ़ विद्री ] दुःख की बात है कि अन्यत्र की ही तरह तौलव के प्राचीन जैन इतिहास के निर्माण के लिये भी हमें शिलालेखादि इतिहास सृजन के साधन बहुत ही न परिमाण में उपलब्ध होते हैं। बल्कि उपलब्ध इन साधनों का डा० बी० ए० सालेतोर', प्रो० एस० ग्रा० शर्मा आदि कतिपय विद्वानों ने अपनी बहुमूल्य कृतियों में उपयोग किया भी है। हाँ, इसमें सन्देह नहीं है कि यहाँ पर खोजने से शिलालेखादे इतिहास निमाण के साधन और भी मिल सकते हैं । इस प्रसंग में यह कह देना अनुचित नहीं होगा कि जे स्टशंकर, चुकनन आदि पाश्चात्य विद्वान् प्रवासियों ने अपने लेखों में यहां के सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, उसे उपेक्षाह से देखना समुचित नहीं होगा। इनके लेखों में गलतियों अवश्य है, फिर भी इन गलतियों के पीछे उनमें प्रतिपादित बहुमूल्य बातों को यों ही छोड़ देना बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती । उपयुक्त प्रवासियों के लेखों को आमूलाग्र पढ़कर 'हंसीग्याय' से छानवीन के साथ अच्छी बातों का एकत्रित करना श्रावश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है। । यद्यपि इस समय प्राचीन तुलुन या तौलव की मादा निश्चितरूप से बताना बहुत कठिन है। फिर भी इतना तो निश्चित ही है कि गेरुप्पे, भटकल एवं कारकल ये तीनों इसके राजकीय अधिकार के प्रमुख केन्द्र थे साथ ही साथ यह भी जान लेना आवश्यक है कि प्राचीन देव कीक तौलव का ही अवशेष था। यहीं हैव कोकण श्राजकल दक्षिण कन्नड और उत्तर कन्नड के रूप में विभक्त है । इस समय दक्षिण कन्नड मद्रास प्रान्त में और उत्तर कन्नड बंबई प्रान्त में सम्मिलित है। प्राचीन जैन गुरु परंपरा आदि से उपलब्ध पुर (विलगि), सुधापुर (सोदे ), संगीतपुर ( हाडहल्लि ) र सुर्गापुर ( होनावर ) आदि भी तौलव के ही प्राचीन प्रमुख स्थान थे। बल्कि मूडबिद्रीय चन्द्रनाथ जिनालय के एक शासन से सिद्ध होता है कि वर्तमान मैसूर राज्यान्तर्गत नगर का सम्बन्ध भी तालव से था । उस जमाने में वहाँ पर महामण्डलेश्वर जिनदास साकूब मल्ल राज्य करता रहा । कारकल के अंडेय, मूडबिद्री के चोट, नन्दावर के बंग, अलदंगाडि के अजिल, बैलंगडि के मूल, और मूल्कि के सावंत यदि ये सब पहले जो कि तौलव के स्वतंत्र जैन शासक रहे, वे क्रमशः | "Medieval Jainism" तथा "Ancient Karnatak" 2 "Jainism & Karnatak Culture" Vol. I. ३ तुलुवदेश तिलकायमान नगर सिद्धसिंहासनाधिपतियागि सुवर्णपुरिवित्र अलंकृतमाद हैव कोंकण राज्यमं प्रतिपालिसृति"
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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