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________________ ८४ भास्कर [भाग १७ जिसका अर्थ है 'अस्त होना'। भावार्थ-वह सूर्यास्त होने की ओर अवस्थित है। कोई उसे हिब के 'अराबा' शब्द से सम्बद्ध करते हैं, जिसका अर्थ 'मरुभूमि' हैं। दोनों ही व्युत्पत्तियां अरव के लिए सार्थक हैं। प्राचीनकाल में वह अमन, हेजाज, तिहामा, नेजद और ऐमामा नामक पांच प्रदेशों में विभक्त था। अरब लोग सेमतिक जातीय हैं। इनसे भारतवर्ष का व्यापार प्राचीन काल से होता था। प्राचीन अरब जाति प्राद, यमद, तम्म, जादिस, जोहीम, श्रामलेक प्रभृनि कई शाखाओं में विभक्त थी- आजकल वे 'असली' अरब क लाते हैं। दूसरे लोग 'खाती हैं जो खातनवंश से निकल कर वहाँ बसे हैं, इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद सा० का जन्म अरब में हुआ था। उनसे पहले अरब में जो लोग बमते थे. वे नक्षत्रों, सूर्य, चन्द्र और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते थे। जैन शास्त्रों में अरब देश की गणना अनार्य देशों में की गई है। वहाँ हिसक लोग उत्पन्न होते बताये हैं। इसको 'बीप' दीव भी कहते थे और वहाँ के सिक 'साभरक' कहे जाते थे। उम्मका उल्लेग्य जल पटन के रूप में इसलिए किया गया है. कि अरब से समुद्र द्वारा व्यापार किया जाता था। मार्य मम्राट सम्प्रति ने अरब देश में भी जैन मुनियों के विहार की व्यवस्था की थी। उस समय से अरब में जैनधर्म का प्रचार हुअा था, जो मुहम्मद ना के ममय तक व । प्रचलित रहा। श्रवणबेलगोल के भट्टारक चाम्कोनि का मत रहा है कि दक्षिण भारत में बहुत से जैनी अरब से आकर बसे हैं। उनका कहना था कि पहले जैनी मारे अायग्बंट (आज के सारे विश्व में) फैले हार थे। अरब के पाश्वभट्रारक राजा की आज्ञा से जैनों के प्रति अत्याचार किया गया- इस कारण वे भारत चने आप पार्श्व मंभवतः पारस्य का अपभृष्ट रूप हैं। पारस्य के राजा का अधिकार अरब पर हुअा था, नभा १ दिन्दी विश्वकोप, भा० २० १५३-५५ २ हिन्दी विश्वकोष भा०२१०२५३-४५६ ३ प्रश्नव्याकरण (हैदराबाद संस्करण) पृ० २४ 4 Life in Ancient India p. 281 ५ परिशिष्ट पर्व भा०२ पृ० ११५-२१ एवं जैन भिद्रात भास्कर, भा० १६ १० ११४-१२, 6 "Formerly they (Jains) were very numerous in Arabia, but that about 2500 years ago, a terrible operstitution took place at Mecca by orders of a king named Parshwa Bhattaraka, which forced great numbers to come to this country". - Asiatic Rescarches Vol IX p. 284
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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