________________
भास्कर
[भाग १
कट्टेमार दोडम्म शेट्दी से दिलाने को वर्णीजी ने वचन दिया। पाठशाला स्थापित करने का शुभ समाचार धर्मस्थल से ही अरलगुम्मरण शेट्टि जी को भी दिया गया था। सभा में आप भी सम्मिलित हुए थे। मूडबिद्री में देवकुमारजी देरम्म शेट्रिजी के यहाँ ठहराये गये थे और वहाँ पर आपकी कुल व्यवस्था सपरिश्रम पं० नेमिराजजी ने की थी। देवकुमारजी को लिवा लाने के लिये श्री पद्मनाभ शेट्टिजी, नेमि इन्द्रज मादि मुडबिद्री के प्रमुख वहाँ से ६-७ मील की दूर ही पर गये थे। मूडबिद्री में देवकुमारजी का अच्छा सम्मान हुआ। आप यहाँ पर कई दिन ठहरे। पाठशाला के प्रबन्ध के लिये यहाँ पर कुछ रोज ठहरना आवश्यक भी था।
अपनी पूर्व स्वीकृति के अनुसार मकान खरीदने के लिये हेग्डे जी ने पाँच हजार और दोहम्म शेट्दी ने पाँच हजार इस प्रकार दोनों ने मिलकर दस हजार चन्दा किया। पर जिलाधीश को उदार कृपा से मकान तो साढ़े आठ हजार में ही मिल गया। क्योंकि जिलाधीश धर्मश्रद्धालु व्यक्ति थे। बस, उसी समय मूडबिद्री में बाकायदा पाठशाला स्थापित हुई। बल्कि इसके उपरान्त देवकुमारजी की ही प्रेरणा से इसी यात्रा में अंग्रेजी पढ़नेवाले जैन विद्यार्थियों के लिये मंगलूर में एक छात्रालय एवं कारकल में एक संस्कृत पाठशाला और स्थापित हुई। इसमें शक नहीं है कि देवकुमारजी की यह यात्रा सर्वप्रकार से सफल रही और उत्तर प्रान्तवालों से खासकर भारावालों से यहाँ वालों का घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गया। बल्कि जैन सिद्धान्तभवन स्थापित करने की प्रेरणा भी आपको यहीं से मिली। ___ यह यात्राविवरण पूज्य वर्णीजी के द्वारा कही गयी बातों के आधार पर ही लिखा गया है। इसमें अपना कुछ भी नहीं है। बल्कि वर्णीजी का कहना है कि देवकुमारजी की यह यात्रा जिस शान से हुई थी उस शान से उत्तर प्रान्तवालों में से आजतक किसीकी नहीं हुई। इस यात्रा म दक्षिण के भाइयों ने मापका बड़ा सम्मान किया था।