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________________ भास्कर [भाग १७ गुणमाला को उठा ले आया। दोनों ने दोनों को वासनानुरक्त बनाने के असफल प्रयत्न किये। गजसिंह भी स्वदार संतोषत्रत में दृढ़ रहे और गुणमाला तो अपने शील के लिए प्रसिद्ध थी ही-संकट के समय भी वह दृढ़ रही। परिणामतः उसकी रक्षा हुई। गजसिंह भी उससे आकर मिल गये। जो मानव अपने पर विश्वास रखता है, उसके संकट काल में उसका धर्म सहायक बनाता ही है। सिद्धावल तीर्थ की वंदना का वर्णन विशद किया गया है । पुत्र प्राप्ति के लिए धर्म की आराधना को ही श्रेष्ठ उपाय बताया गया है। अन्त में उनके एक सुंदर पुत्र हुआ जिसे घोड़े पर चढ़कर चौगान खेलने का बहुत शौक था। एक दिन रत्नशेषर मुनि से उसने भी स्वदार संतोष व्रत ग्रहण किया और परिग्रह का परिमाण भी कर लिया। विदर्भनगर की राजकुमारी गांधारी आदि राजपुत्रियों से उसका विवाह किया गया। वह भी शीजवत पालने में सावधान था। उस समय समाज में शोल मर्यादा स्त्री और पुरुषों के लिये समान रूप में व्यवहार्य थी, अन्त में गजसिंह और गुणमाला ने धर्मघोषमुनि से दीक्षा ले तप तपा। इस रचना में कविने धर्म के निरूपण के साथ सामाजिक परिस्थिति और साहित्य की सरसता का सुन्दर चित्रण किया है। इसे उन्होंने संवत् १७६१. में टोंक नगर में रचा था। ३ क्या शक और कुषाण प्रादि राज्यों में ब्राह्मण धर्म का नाश किया गया था ? स्व० म० म. श्री काशीप्रसाद जी जायसवाल सदृश उच्चकोटि के इतिहासज्ञ यिद्वान का मत था कि शक और कुषाण राजाओं के शासनकाल में ब्राह्मण धर्म के साथ बहुत अत्या. चार किया गया था। अपने 'भारतीय इतिहास (Histori of India, 150A D.350. A. D. pp. 45-48) में उन्होंने यही लिखा है। पहली बात तो उन्होंने यह लिखो है कि इस काल के पुरातत्व में ऐसे हिन्दू अवशेषों का अभाव है, जिनसे यह सिद्ध हो कि उस समय हिन्द पूजा (Orthodox Worship) का प्रचलन था; जब कि 'मत्स्यपुराण' से स्पष्ट है कि उस समय हिन्दू मन्दिर और मूर्तियां बनायी गयी थीं। अतः उन हिन्दू मन्दिरादि को शकों और कुषाणों ने नष्ट किया होगा। इसकी पुष्टि में वह यह भी लिखते हैं कि जैन और बौद्ध कला में अप्सरा और गजलक्ष्मी का समावेश हिन्दुओं से लेकर किया गया। किन्तु अप्सरा और गजलक्ष्मी का प्रचलन तो इस काल के पहले से भारतीय कला में होता आ रहा था। जैन शास्त्रों में स्वर्गों के वर्णन में देवाङ्गनाओं और अप्सराओं का वर्णन मिलता ही है-जब वह जैनों के शास्त्रीय विधान का मौलिक अंश है, तब यह कैसे संभव है कि उन्होंने इसकी नकल हिन्दुओं की अप्सराओं और गजलमी से की होगी ?. . जैनों में .श्री, ही, धृति, लक्ष्मी नामक चार नेवियां शाश्वत
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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