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किरण १]
सम्राट् सम्प्रति और उसकी कृतियाँ
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निर्वाण स्थान, समाधि स्थान एवं अपने जन्म स्थान को पसन्द किया था उसी प्रकार स्तम्भों के लिये अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर के तप स्थान और उपसर्ग स्थानों को पसन्द किया। स्तम्भ लेखों में यह निश्चय करना कठिन है कि सम्राट् सम्प्रति के स्तम्भ कौन-कौन हैं क्योंकि महाराज अशोक ने भी ८४०० स्तम्भों का निर्माण किया था अतः सम्राट् सम्प्रति और सम्राट अशोक इन दोनों के सम्भों का मिश्रण हो गया है। फिर भी इतना सुनिश्चित है कि जिन स्तम्भों पर सिंह की मूर्ति है, वे सभी स्तम्भ सम्राट सम्प्रति के हैं। इसने अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर के लांछन सिंह को मूर्ति को स्तम्भों पर स्थापित किया था। इसका अभिप्राय यह था कि सामान्य जनता भी वीरप्रभु का स्मरण उनके लांछन सिंह को देखकर कर सके।
श्री डा. त्रिभुवनदास जी ने स्तूपों के निर्माण का कारण बताया है कि भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के अनन्तर उनके पट्टधर आचार्य या अन्य प्रमुख जैनधर्म के प्रचारक श्रावक, जिन्होंने समाधिमरण धारण किया था; के अग्नि संस्कार करके उत्पन्न हुए भस्म को सुरक्षित रखने के लिये इन स्तूों का निर्माण सम्राट् सम्प्रति उर्फ प्रियदर्शिन ने कराया था। इसी कारण इन स्तूपों को भस्म करण्डक कहा गया है । अथवा यह भी संभव है कि महावीर के अनन्तर हुए जैनाचार्यों के समाधि स्थान पर उनकी भस्म को सुरक्षित रखने के लिये स्तूपों का निर्माण कराया गया हो । मेरा अनुमान है कि चौबीस तीर्थकरों के पञ्चकल्याणक स्थानों पर सम्प्रति ने स्तूपों का निर्माण कराया था। यद्यपि मेरे अनुमान की पुष्टि अन्य प्रमाणों से नहीं होती है फिर भी अब तक जो स्तूपों के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए हैं, उनसे उक्त अनुमान को पर्याप्त बल मिलता है।
वर्तमान राजमुद्रा वर्तमान राजमुद्रा, जिसे भारत सरकार ने अशोक की मुद्रा मानकर स्वीकार किया है, वास्तव में सम्राट् सम्प्रति की है। सम्राट् सम्प्रति उर्फ प्रियदर्शिन ने सारनाथ में जो स्तम्भ खड़ा किया था, उसपर तीन सिंहों की मूर्तियाँ, सिंहों के नीचे धर्मचक्र यथा इसके दाई, बाई ओर बैल और घोड़े की मूर्तियाँ अंकित करायी है। इस मुद्रा के सभी प्रतीकों का जैन संस्कृति से सम्बन्ध है। सिंह अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर का लांछन था, अतः अन्तिम तीर्थकर की स्मृति की लिये सिंह की मूर्ति को अपनाया था। जैनाम्नाय में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ये तीन रत्न माने जाते हैं, इन तीनों का उपदेश भगवान महावीर ने दिया था अतः तीन सिहों की मूर्तियाँ रखीं। इन मूर्तियों का सनिवेश भी जैन संस्कृति के प्रतीकों के अनुसार किया गया है। बीचवाला सिंह सम्यग्दर्शन का प्रतीक है तथा अगल