SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १] सम्राट् सम्प्रति और उसकी कृतियाँ दर्शिन के समय में पार्श्वनाथ हिल की तलहटी धौली के निकट थी। इसी कारण सम्राट ने इस पवित्र क्षेत्र की तलहटी में शिलालेख खुदवाया था। इस शिलालेख के पास स्थूल हाथी की मूर्ति अङ्कित को गयी है, जो इस बात को प्रकट करती है कि सम्राट इस स्थान को अन्य स्थानों की अपेक्षा विशेष पवित्र समझना था; क्योंकि इस पर्वत पर से बीस तीर्थ करों ने निर्वाण लाभ किया है। प्राचीनकाल में खण्डगिरि, उदयगिरि सम्मेदशिम्बर पर्वत के ही अन्तर्गत थे। खण्ड. गिरि नाम स्वयं इस बात का द्योतक है कि पहाड़ के खरिडत हो जाने के कारण ही यह नाम पड़ा है। महाराज खारवेल के "मय में सम्मेदशिखर पर्वत की श्रेणयाँ खण्डगिरि, उदय गिरि तक थीं। कलिंग नृपति बारवेलने वण्डगिरि हाथी गुंफा का शिलालेख इसी कारण वुदवाया था कि वह इसे मम्मेदशिखर पर्वत का भाग मानता था। ४ रूपनाथ' ( लघु शिलालेख )- बारहवें तीर्थकर वासुपूज्य की निर्वाण भूमि चम्पापुरी के प्राम-पास का कोई पर्वत था। इस चम्पापुरी को महाराज कुणिक ने ई० पू० ५२५ में बसाया था। यह चम्पानगरी रूपनाथ और भरहुन के बीच में थी। चम्पानगरी के निकट के पर्व की तलहटी रूपनाथ में ही थी। यद्यपि इस स्थान पर के लेख अस्पष्ट हैं तथा हाथी का चिनद भी मिट गया प्रतीत होता है। ५पावापुरी- यह अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी की निर्वाणभूमि है। जिस प्रकार अन्य तीर्थंकरों ने पर्वत के ऊर ध्यानरूढ़ हो निर्वाण लाभ किया था, उस प्रकार भगवान महावीर ने नहीं। इन्होंने निर्जन मुरम्य वन के मध्य परसरोवर से युक्त पावापरी के स्थल भाग से शुक्ल ध्यान द्वारा निर्वाण लाम किया है। इस स्थान पर कोई पहाड़ न होने के कारण सम्राट सम्प्रति शिलालेख नहीं खुदवा सका है। ६-७ शाह याज' गढ़ी और मानसेरा' -ये दोनों स्थान इनके वंश के लोगों के सामने की श्राधी ननि कंगकर बनायी गयी है। बठे प्रज्ञापन के अन्त में 'सेना' शब्द भी प्राया है। १-या कल रूपनाथ मयप्रदेश के जबलपुर जिले में माना जाता है, प्राचीन चम्मापुरी रूपनाथ और भरहुन के मन में थी या चानावामी का निवाग भी इसी चमापुरी के निकटवाली पहाड़ी से हुश्रा या ! २- यह गाय पधिमोतर मीम प्रान के पेशावर जिले की युसुफ नई तहसील में है । इसके पास एक नाम पर नौदह प्रज्ञापनाएँ उत्कीर्णित हैं। यह पही पेशावर से ४० मीन उत्तर-पूर्व है। ३-यह पश्रमांतर सीमा प्रान्त के हमारी जिले में अबटाबाद नगर से १५ मील उत्तर की और ।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy