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________________ किरण १] सम्राट मम्प्रति और उसकी कृतियाँ अशोक की मृत्यु के उपरान्त मम्प्रति ने पाटलीपुत्र के सिंहासन पर स्थित हो अपनी राज्य व्यवस्था को सुदृढ़ किया। उसने युवराज काल में ही काठियावाड और दक्षिणापथ को स्वाधीन कर लिया था। शिीथचूर्णि में बताया गया है -"तेगण मुटु विसया अंदा दमिला य श्रोयविया" इमी सम्बन्ध में कलमचूर्णिकार ने लिखा है- "ताहे तेण संपणा उजागीश्राई करें दक्षिण बहो मन्यो तत्थ ठिएग्ण वि अजावितो" अमीन उस सम्प्रनि नरेश ने ममम्न दक्षिणापथ को स्वाधीन कर लिया था। इस प्रकार पश्चिम और दक्षिण भारन राज्याभिषेक होने के पहले ही युवा अवस्था में सम्प्रति के श्राधीन थे। पूर्वीय भारत मगध के र ज्यसिंहासन पर अभिषिक्त होने के पश्चात् मम्प्रति के अधिकार में पाया। मुनि श्री कल्याण विजय जी ने वार निर्वाण संबन और जैन काल गणना' नामक पुस्तक में अनुमान किया है कि मम्नति के पूर पूगर भारत का कुछ भाग अशोक के द्वितीय पुत्र दशरथ के अधीन था । कुणाल के अन्धा होने के उपरान्त जब तक अवन्ति का शासन सम्प्रनि का नहीं मिला, तब तक अशोक का यही द्वितीय पुत्र दशरथ अवन्ति का शासक रहा होगा। मुनि जी के इस अनुमान की पुष्टि दशरथ के नाम के उपलब्ध शिलालेखों से भी हो जाना है। सम्प्रति ने अपने राज्य में अपनी कोनि को स्थायी रखने के लिये शिलाले व और स्तम्भ लेख खुदवाय तथा अनेक स्तूगं का निर्माण कर जनता का कल्याण किया। यह इतना निरभिमानी था कि इसने अपना पूरा नाम किमी भी शिलालेम्ब या स्तम्भ लेख में कीन नहीं कराया। केवल महाराज प्रियदर्शिन के नाम से सभी लेख खुदवाये हैं। भ्रमवश लोगों ने अशोक को प्रयदाशन मान लिया है, जिमसे सम्प्रति की सारी कृतियां आज अशोक की मानी जाने लगी है। अशोक के नाम के जितने शिलालेख प्रचलित हैं, उनमें दो-तान को छोड़ शप सभी सम्प्रति के हैं। सम्प्रतिने अपने प्रिय हिसा धर्म के प्रचार के लिये जैनमान्यता के अनुसार धर्माज्ञाएं प्रचलित की हैं। महागज सम्पति ने प्रमुख चौदह शिलालेखों को नोयंकरों के निर्वाण स्थान, अपने कुटुम्बयों के मृत्यु स्थान और अपने जन्म स्थान पर खुदवाया है। उसका विश्वास था कि निर्वाणस्थान पर यात्रा के लिये पानेवाले यात्रा इन धर्माज्ञाओं से लाभ उठायेंगे तथा संसार से विरक्त हो, अपना कल्याण करेंगे 1 जैन सम्प्रदाय के २१ तारों में से श्री ऋषभ नाथ ने अष्टापद पर्वत से, नेमिनाथ ने गिरनार पर्वत से. वासुपूज्य स्वामी ने चम्पापुर के समीपवर्ती पर्वत से, महावीर स्वामी ने पावापुरी से भीर शप बोस तीर्थंकरों ने श्री सम्मेद शिखर (पार्श्वनाथ हिल ) से
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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