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किरण १]
सम्राट् सम्प्रति और उसकी कृतियाँ
जैन और बौद्ध साहित्य में कुणाल का अन्धा होना बताया गया है। विमाता के विद्वेष के कारण कुणाल को अपने नेत्रों से हाथ धोना पड़ा था। दिव्यावदान और अवदान कल्पलना में लिखा है कि कुणाल की आँखें बड़ी सुन्दर थीं, जिससे उसकी सुन्दर आँखों पर मोहित होकर अशोक की रानी तिप्यरक्षिता ने उससे अनुचित प्रार्थना की, किन्तु कुणाल ने उसे स्वीकार नहीं किया। अपना अपमान समझकर रानी अत्यन्त असन्तुष्ट हुई और अवसर मिलने पर बदला लेने की बात तय करली। एक बार राजा अशोक बीमार पड़ा था, वेगों ने नाना प्रकार से चिकित्सा की, किन्तु कुछ लाभ नहीं हुआ। निष्यरक्षिता ने अपनी चतुराई और परि चर्या से सम्राट अशोक को निगेग कर लिया। प्रसन्न होकर महाराज अशोक ने उसे सात दिन का राज्य दिया। राज्य प्राप्त कर निष्यरक्षिता ने तक्षशना के अधिकारी वर्ग के पास आज्ञापत्र भेजा कि कुणाल हमारे कुल का कलंक है, अतः इसकी प्रांस्व निकाल ली जायें। फलतः कुणाल को श्रज्ञा प्रान कर स्वयं अन्धा होना पड़ा।
जन पन्धों में बताया है कि विद्याध्ययन के समय ही अवन्ति में कुणाल को विमाना तिप्यरनिता के पड़यन्त्रक कारण अन्या होना पड़ा था । कुणाल ने अपनी बुद्धिमना से अपने पुत्र मम्प्रति को अशोक से राज्य दिलवा दिया था। सम्प्रति के सम्बन्ध में जन लेम्बो में दो मत प्रचलित है। प्रथम मत वृहत्कल्पचरिण कल्पकिरणावली. परिशिष्टपर्व आदि का है । इस मत के अनुसार कुणाल ने सम्प्रति की उत्पत्ति के अनन्तर अशोक से उसके लिये गज्य मांगा: अशाक ने उसा ममय राज्य दे दिया। दूसरा मन निशीथ चणि का है, ' इसके अनुसार सम्प्रति को कुमार भुक्ति में उज्जयिनी का राज्य मिला था।
इतिहासकारोंने जो कुणाल का राज्यकाल वर्ष बताया है तथा उसे अवन्ति या तक्षशिला का शामक लिम्बा है: जैन और बौद्ध मान्यता के अनुसार भी इस कथन को
-जन अन्ध में कुरान का अपना में अन्धा या नया बताया है, किन्तु बौद्ध ग्रन्थों में न दाशला में। इन दानो कपन में कई अन्तानी है: शोक प्राचीन भारत में अवन्ति और तक्षशिला एक नमी था। बस मादा में अवनि के हो अर्थ में तक्षशला का प्रयोग हुअा है। वैजयन्नि कोश में बताया भी है-"अपनी स्याननशिला" -- जयन्ती
-- जैन मिलाप मारकर भाग :किरण २ पृ. ११५
३-कि काहिम अंजनी रजे कुणाला भरणान-मम पुत्रस्थि संपती नाम कुमारी, दिनं जं-वृहत्कल्पचूगि २२ ।।
+ + तस्य मुतः कुणालमतन्नन्दनास्त्रिग्वण्डभाना संघति नामा भूपतः अभूत् , सच जातमात्र एक पितामहदनराजः । ..कल्यांकरणावली १६५
४-उजेगी से कुमारभात्ती दिएणा-निशीधचूर्णि