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________________ ४२ भास्कर [ भाग १७ हाँ, यह कर्म श्रात्मा त्मा भी अकेला आत्मा तो सर्वदा एक समान शुद्ध है । कर्म तो शरीर का गुण है। के विद्यमान रहने से जीवनी शक्ति के प्रभाव के अन्तर्गत ही होता है। कर्म नहीं करता और पुद्गल भी अकेला अचेतन कर्म नहीं कर सकता। वर्गगा में आदान प्रदान होकर तीलियाँ होकर तज्जन्य प्रभाव द्वारा दी शारीरिक या मानसिक क्रिया कलाप होते हैं कमों को विशिष्ट और अच्छा बनाने के लिये उचित सुविधाएं और परिस्थितियो का होना संसार में अत्यन्त आवश्यक है । आत्मा और anी का समूह ननी है ऊँच, नत्र हैन पवित्र । हमारी अपनी उन्नति, धर्म और समाज की उन्नति एवं देश और संसार की उन्नति कमों को अच्छा बनाने से ही हो सकती है। इसके लिये एक को सहायता एवं सहयोग तथा सहानुभूतिपूर्वक ऐसे साधन उपलब्ध करने चाहिये जिससे वह अच्छी संगति, अच्छे भाव एवं शुभ दर्शन प्राप्त कर अपने ग्राम की वनेवाली वर्गाओं की बनावट और संगठन में समुचित परिवर्तन ला सके । हर एक का अनुराग प्रभाव हर एक दूसरे व्यक्ति पर पूर्णरूप से पड़ता है। अपनी पूर्ण उन्नति के लिये अपने चारों तरफ के सभी लोगो की उन्नति श्रावश्यक 1 हम अकेले शारीरिक मानसिक शुद्धि को सफलता में भाग भी नहीं प्राप्त कर सकते । का निवेश एक से दूसरे शरीर में होता रहता है । रूप, आकृतियों का भी गहरा नाव पड़ता i भावना श्रार कमी का कर कहना ही क्या। किसीको दोष न देवर सका समान वर दे यही सच्चा धर्म है antareas सत्य और अहिंसा का पालन भी । जैन कर्मवाद का बहुत कुछ स्पष्टीकरण इस विवेचन से हो जाता 1 वास्तव में ना की air fata ज्ञानिक और मौकिक है । द्रव्य और भावकर्म के स्वरूप और कार्य का विवेचन विज्ञान प्रणाली पर श्रित है। कमों का रसायनिक मिश्रण, उससे उत्पन्न शक्ति तथा फल किन आधार पर अभिन हैं, इसका निरूपण हो चुका है।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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