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________________ किरण १] रूप और कर्म-एक तुलनात्मक वैज्ञानिक विवेचन होने से हम उस शरीर को वा उसके प्रभाव को देख नहीं पाते हैं। पर चुंकि उस व्यक्ति के शरीर में यात्मज्योति-जीवनी-रहती है इससे यह कार से हकने वाला शरीर क्रियाशील हो जाता है । दुष्ट या बुरे भावों से दुष्ट कमी या बुरी प्राकृतियां एवं शुभ भावनाओं से शुभ प्राकृतियों का निर्माण हो कर उनका कार्य या श्रमर इस शरीर के अगों को उसी विशेा प्रभाव में इस तरह प्रचालित करता है कि दोनों के सम्मिलित क्रियाकलाप जिन्हें हम उस व्यक्ति की स्वाभाविक क्रियायों से भिन्न पाते हैं; और तब कहा जाता है कि उस व्यक्ति के ऊपर भृत बाधा या किसी गुप्त शक्ति का प्रभाव हो गया है। ऐमी हालत में मन की एकाग्रता या नीत्र भावों को प्रबलता को तोड़ने या बाधा देने से लाभ देखा जाता है। इससे यह भी साबित होता है कि वर्गणा निर्मित ऐसे शरीर भी हो सकते हैं जो हमारी याखों से अदृश्य, प्रछन या गुप्त रहे; पारदर्शक वस्तु प्रो की बनावट के समान दिखलाई न दं फिर भी उनमें श्रात्मा हो, जीवन हो और वे सचमुच इमी लोक में या कहीं भी घूमते फिरते और जीवित हो उनकी अवस्थिति (existance) हो जैनशास्त्रों में भी ऐन अन्तर देवों का होना कहा गया है। आधुनिक समय में एक गोल भेज के चारों तरफ तीन चार पुरुप बैट कर किसी मृतात्मा के रूप का ध्यान करते हैं तब उस मृतात्मा का जीव उन चारों में से किसी एक पर गाया हुवा कहा जाता है जब वह उस मृतात्मा के सरीखे काम करने या बात करने लगता है। यह मृतात्मा स्वः नहीं पाती यह तो उनकी रूपाकृति का एकाग्रयान करने में वर्गमानक रूप का निर्माण हो जाना है जो किसी खास व्यक्ति पर अधिक प्रभावकारी होने में प्रत्यक्ष फल प्रदर्शित करना है-जैसा ऊपर कह चुके है-वैसे शरीर एवं रूपका जो कर्म होना चाहिए वही वह व्यक्ति अपने अदर विद्यमान कीपन शक्ति के सारे करने लगता है। यही इस विद्या का गृढ सत्य है दगल की बनावट का निमी है। इस शरीर में जो कुछ भी संज्ञान और चनना पूर्ण हलन चलन या बाबत मामानी है यमनमा की जमानता के फल स्वरूप ही हैं। ग्रामा कामना र पुल का कप सागर बालों के मिलने से ही सारे कार्य कलार होते हैं। जीव की अस्मिता के वगेर युद्ध नहीं हो सकता। प्रत पाथा या भूत बाधा जिन भावनात्मक रूपों का निमांग वर्गगज के संगठन द्वारा करती है वह भी उस व्यक्ति में जीवनी या उनके असली शरीर में रहने के कारण ही प्रभाव करती है निवि में यह बात नहीं हो सकती। मानव शरीर के अंदर जितनी वर्गगा है उन्हें प्रधानतः तीन भागों में विभक्त किया गया है "कार्मणवर्गणा", "तेजस बर्गणा" एवं "श्रौदारक वर्गा"। पुद्गल के स्कन्धों को विभिन्न वर्ग (classes) और श्रेणियों में विभक्त कर देने के कारण ही "वर्गणा” नामकरण हुआ। मनुष्य का हरएक कार्य, व्यवहार, श्रा चरण इन वर्गणाओं को अलग अलग बनावटों द्वारा ही निर्मित एवं परिचालित होता है। किसी एक वर्ष को उत्तम करने या क्रियाशील बनाने वाली वर्गणाएं
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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