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________________ भास्कर [भाग १७ सीधा चलना नहीं हो सकता। जिस अंग में कमी होगी उसका असर उस अंग के संचालन और क्रिया कलाप पर पूर्ण रूप से दृष्टिगोचर होगा। ये अंग क्या हैं ? ये सभी "वर्गणाओं" के समूह द्वारा ही निर्मित हैं-वर्गणाओं का संगठन जैमा हुआ इनकी बनावट, रूप और गुण-कर्म में भी वैसी ही विशेषता आगई। यह बात अन्यथा कैसे हो सकती है ? कमजोरपना वा सशक्तपना इत्यादि भी वर्गणाओं की बनावट के अनुसार ही होते हैं, कम-वेश या जैसे भी हो । यहां तो केवल दो एक जानवरों का दृष्टान्त दिया-किसी भी जीवधारी का शरीर उसको क्रियाओं और चाल-ढाल (movements) को सीमित कर देता है। एक और उदाहरण लीजिएथोड़ी देर के लिए यदि मान लिया जाय कि किसी घोड़े के मुर्दे शरीर में किसी मानव की श्रात्मा का संचार किसी प्रकार कर दिया गया-तो क्या वह पुनः जी उठने पर घोड़े के कार्य या कर्म ही करेगा कि मनुष्य के ? उत्तर एकदम सीधा है कि उसके शरीर की बनावट और गठन ही ऐसे हैं कि वह मानवोचित कुछ कर ही नहीं सकता, उससे तो केवल घोड़े के ही कर्म होंगे। यदि थोड़ी देर के लिए यह भी मान लिया जाय कि जो मनुष्य जीव उस में घुसा उसका मन एवं बुद्धि भी ज्यों की त्यों है तब भी केवल समझदारी में कुछ विशेषता श्रा सकती है पर अंगो का दलन-चलन या उनसे होने वाले काम तो वे ही होंगे जो उस घोड़े के शरीर द्वारा संभव हैं। यही उदाहरण एक कुत्ते, बिल्ली, किसी पक्षी, छोटे कीट पतंग या पेड़ पौधे सभी के माथ इसी तरह उपयुक रूप में उनकी गतियों की सीमा को, समान शक्ति वाली प्रात्मा के होते हुए भी शरीर की ' बनावट द्वारा ही सीमित और बंधी हुई सिद्ध करता है। मनुष्य शरीर में भी अवयवों की बनावट तथा मन, बुद्धि इत्यादि की वर्गणा-निर्मित रूपरेखा के ऊपर ही किसी भी व्यक्ति के कार्य संपादन की शक्ति, योग्यता. क्षमता एवं तौर-तरीका या उस अवयव और अंगोपांग के हलन-चलन निर्भर करते हैं। किन्हीं भी दो व्यक्ति की भीतरी या बाहरी समानता उनकी वर्गणाओं के संगठन की सामानता के कारण ही है। कोई दो मानव जितने जितने एक दूसरे के समान होंगे उनकी हरएक बातें, कार्य कलाप, श्राचार व्यवहार इत्यादि सब उसी परिमाण में समान या असमान होंगे। बाहरी रूप और आकृति अंदरूनी बनावटों से भिन्न नहीं। सब एक दूसरे के फलस्वरूप एक दूसरे में "गुण-गुणी" की तरह एक हैं। इसमें अपवाद (exception) की गुंजाइश नहीं। प्रकृति के नियमों या कार्यों में अपवाद नहीं होते; वहां तो सब कुछ स्वाभाविक और निश्चित रूप से ही घटित होता है। शरीर को बनानेवाली “वर्गणाओं' के अतिरिक्त "मन" (mind) को बनानेवाली "वर्गणाएं" भी अलग होती हैं और उनकी अपनी विशेषताएँ, और गुण भी अपने विशेष तौर के होते हैं। इन "मनोवर्गणाओं" की बनावट के अनुसार ही "मानव-मन" की हरकतें, मनोदेश में हसन चलन या मन की हर एक बातें, विचार या काम होते हैं। "पुद्गल" तो निर्जीव है
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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