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किरण १]
जैन-प्रन्थों में क्षेत्रमिति -१
Chord = /451-11) यह नियम आजकल भी प्रचलित है। जीवा के लिये त्रिलोक-सार (गाथा ७६६) में एक और नियम मिलता है : वह यह है,
जीवा =/arc' - 6 साथ ही चाप के लिए दो नियम उपलब्ध हैं,
(i) चाप = 1/sh + city
(i) चाप' - 4h ( + 1) चाप के लिए पहले नियम की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में दो कल्पनाएँ की जा सकती हैं । प्रथमतः शायद श्राचार्यों ने चापार्ध जीवा और चापार्ध में कोई अनुगत पाया हो, क्योंकिचापर्ध जीवा = 1+
द्वितीय कल्पना यह हो सकती है, अर्ध परिधि = [ = '10r' = [ir* + 4ri अर्ध परिधि में । = चार की ऊंचाई और व्याम = जीया पर कि चापार्ध जीवा का वर्णन नहीं मिलता अतएव दूसरी कल्पना अधिक मान्य है । ऐसी हालत में जीवा का चाप और उसको ॐनाई के शब्दों में नियम ठीक है, पर स्वयं नियम (i) सही नहीं है । अाजकल के हिसाब से चाप के लिए निम्नलिखित समीकनगा मिलता है:
चाप + F, चाप + F = 0,
जहाँ F, और F, b, c के पल (Function) हैं। रही दूसरे नियम की बात । चाप की ऊँचाई और व्याम के शब्दों में चाप का यह रूप श्रा नकल उपलब्ध नहीं है, बल्कि चतु पातीय समीकरण का रूप मिलता है। वृत्त स्वण्ट की ऊँचाई के लिए नी जीन नियम मिलते हैं: --
(i)h = ! (1 - 11
(ii) h = No 1--Heron fireek' के अनुसार a = 1 4h* + c* + For = 14h' +c.
२-लघु क्षेत्र समासः–इष्टवर्गे वह गुणे जीवावगसंयुते मूल भवति धनुः पृष्ठम् ॥
3-arc- oh yes when L = chord of half arc, 2c - chord 1 = v'hd, 2c = #Ah (d - h). सरल करने पर are का Expression मिलेगा।
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