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बाबू देवकुमार जी की जीवनी
चहुँदि हाहाकार है, शोक महा संताप | बालवृद्ध बनिता बधू, सबही करत प्रलाप || धैर्य २ ! ये भ्रात गण, यही जगत की रीत । काल बलीके सामने, कछुनहिं नीत अनीत ॥
किरण १]
माया जगकी अमित है, यह संसार असार । एक दिना सब जायेंगे, यही जगत व्यवहार ॥ विभव सदा नहि रहि सकै, तथा शरीर अनित्त । काल सदा सिर पर खड़ो, धर्महि दीजें चित्त । मृत्यु जबलों दूर है, जब लौं देह निरोग । धर्मपन्थ साधन करो, वृथा जगतको भोग ||