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________________ किरण १ श्रद्धाञ्जलियाँ नागरी प्रचारिणी सभा के परम पृष्ठपोषक थे । आर्थिक सहायता के अतिरिक्त आप भाषणों और लेखों द्वारा भी सभा की प्रशंसा करते एवं धन-दान की प्ररेणा भी देते थे। हमारी हार्दिक कामना है कि देवकुमाराङ्क प्रकाशित करने के बाद 'देवकुमार स्मारक - मन्थ' आवश्य प्रकाशित किया जाय। क्योंकि उस पीढ़ी के कुछ वृद्ध जन स्मृति रत्न संजोये अभी जीवित हैं । 'भास्कर' के इस अङ्क में एक लेखक के रूप में सम्मिलित न होने का मुझे हार्दिक दुःख हैं । हम भी इस पुनीत अवसर पर आर। नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से वीतरागी, गृह सन्यासी स्वर्गीय बाबू देवकुमारजी को विनीत मधुर श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हैं । आप यथार्थनामा देवकुमार थे । ek tion रामप्रीत शर्मा प्रधान मंत्री:- नागरी प्रचारिणी सभा, आरा । हिन्दी हितैषी पिछले कितने दिन बीत चुके। उस समय हिन्दी अपनी जवानी की के लिए कसमस कर रही थी। आप इसके आकर्षण में बँध चुके थे अंगड़ाई लेने काफी मस्ती दिलेरी के साथ एक दिन आप अपने कई सहकर्मियों के साथ इसके सौन्दर्य और सौष्ठव का आकर्षक प्रदर्शन करते हुए मैदान में उतर पड़े। आपने इसकी भारती उतारने के लिए अनेक मंदिरों का निर्माण किया । श्राज जैन-सिद्धान्त-भवन एक सजीव मूर्ति के रूप में हमारी आँखों के समक्ष वर्त्तमान है । आपने हिन्दी-मंदिरों का सिर्फ निर्माण ही नहीं किया, बल्कि हिन्दी की साधना में निरंतर निरत रहे । हमें आपकी साधना पर गर्व है । हिन्दी जगत आपकी अट्ट एकांत साधना के समक्ष चिरकाल तक नतमस्तक रहेगा । साधक का हृदय पवित्र होता है। आपमें वही पवित्रता वर्त्तमान थी । याचकों ने आपको सर्वदा दरिद्रनारायण के रूप में देखा, और परीक्षकों ने उदारता और सज्जनता की प्रतिमूर्ति के रूप में। जनता की भी आपकी ओर दृष्टि अवश्य गयी; लेकिन उसने आपको एक ठोस और कर्मठ पुरुष की उपाधि दी। आलोचकों और गंभीर पाठकों ने भी आपकी साधना की परीक्षा की। उनकी निगाहों में आप एक सफल कलाकार सिद्ध हुए । सफल कलाकार श्रासुरी वृत्तियों से परे रहता है। संभवतः इसीलिए आप मानवता की एक सची मूर्ति बन गये। आपकी दृष्टि में सभी प्राणी बराबर थे । आप का व्रत था - प्राणियों की सेवा करना । क्या लोगों ने आपको महात्मा की उपाधि देकर अनुचित किया ? मैं कहता हूं - नहीं ।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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