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स्त्री के साथ भोग की इच्छा करना सदाचारी के लिए वजित है।
(४) सत्य अणुव्रत-जो वस्तु जैसी हो उस को वैसा न कहना असत्य कहलाता है। परन्तु जो वात सत्य होने पर भी दूसरे को दुख पहुंचाने के लिए वोली जाती है वह भी असत्य ही है जैसे काने व्यक्ति को काना कह कर चिढ़ाना असत्य गिना जाएगा। इस के विपरीत यदि असत्य बोल कर किसी निर्दोष व्यक्ति के प्राणों की रक्षा होतो हो या उसे अत्याचार से बचाना हो तो सत्याणुव्रती के लिए उस असत्य का भी निषेध नहीं होता । क्रोधवश या लालच में पड़ कर कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
(५) अपरिग्रह अणुव्रत-रुपया, पैसा, जमीन, जायदाद इत्यादि में प्रासक्ति रखने को परिग्रह कहते हैं । अणवती को अपनी इच्छाएं सोमित रखने को ही अपरिग्रह अणुव्रत कहते हैं। इन चीजों को भूख की कोई सीमा नहीं होती इस लिए सदाचारो व्यक्ति संतोष का अभ्यास करता है और जितना आवश्यक हो उसले ज्यादा का त्याग करता है। इसी में मुख को प्राप्ति होती है। असंतोषी व्यक्ति को चाहे जितना भी मिल जाए वह और भी अधिक पाने को लालसा में नदा दुखी बना रहता है।