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प्रयत्न करने पर क्या नहीं हो सकता ? इस लिए
इस कठिन समय में मेरी एक प्रार्थना सुनें । महाराणा प्रताप-एक नहीं अनेक, भामाशाह आप
कहिए क्या कहना चाहते हैं ? भामाशाह-तो कृपया रेगिस्तान की तरफ मुंह किए
खड़े हुए इन घोड़ों का मुंह मेवाड़ की पुण्यभूमि की तरफ मोड़ दीजिए। मेरे खजाने में आपकी ही कृपा से कमाया हुअा काफी धन है । उस के सदुपयोग का इस से अच्छा अवसर कब पाएगा। वह सब का सबाप के चरणों में अर्पित है। इस धन से सेना एकत्रित कर के हम बारह वर्ष तक लड़ सकते हैं और दुश्मन के दांत खट्टे कर सकते हैं । आप मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप के पराक्रम से फिर
एक बार मेवाड़ पर केसरिया झण्डा फहराएगा । महाराणा प्रताप-~(आश्चर्य से) भामाशाह, आप का
यह सम्पूर्ण त्याग मुझे चकित कर रहा है। परन्तु
आप की निजी सम्पत्ति पर मेरा क्या अधिकार है ? भामाशाह-प्रभो, ऐसा न कहिए । मेवाड़ मेरी जन्म
भूमि है । यह सम्पत्ति सारे देश की सम्पत्ति है । मैंने तो केवल धरोहर समझ कर इस की रक्षा की