SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय धर्म यदि जीवन का ग्राधार है तो व्रत उसकी आधारशिला है । धार्मिक जागरण, उसमे श्रद्धा, निष्ठा एव भक्ति भाव ही हमारे अदर आध्यात्मिकता का विकास कर, हममे देवोपम जीवन का पर्याय बनाता है, तो व्रत हमे आत्मशुद्धि, आन्तरिक सौम्यता, ऋजुता, विनयिता एव 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की भावभूमि तैयार करता है । प्राणिमात्र मे समता का आधार ही सामायिक व्रत का अर्थ है । सामायिक, जितना ग्रतर की शुद्धता, समता एव सहजता पर बल देता है, बाह्य का उतना विधान नही करता । हाँ बाह्य का विधान उतनी ही दूर तक करता है, जैसे कि दरिया के उस पार जाने के लिए नौका का विधान आवश्यक होता है । प्रस्तुत पुस्तक सामायिक सूत्र धर्म एव व्रत की इसी मूल भावना पर भाष्य के साथ-साथ मौलिक विवेचन एव चितन प्रस्तुत करती है । धर्म एव व्रतो पर आज अनेकानेक पुस्तके देखने को मिलती हैं किन्तु हमारा उद्देश्य मात्र धर्म के नाम पर धर्म की पुस्तकें आँख मूँद कर छापने का नही है, बल्कि धर्मप्रेमी श्रद्धालु सज्जनो को धर्मं व व्रतो के सूत्रो का सरल भाषा मे स्पष्ट एव चितनपूर्ण भाष्य प्रस्तुत करने के साथ ही उन्हे धर्म व व्रतो की मूल बातो से अवगत करना है, जो उन्हे वास्तविकता का समुचित ज्ञान कराता है । सामायिक - सूत्र, हमारा इस दिशा मे सफल प्रयास है, यह बात इससे स्वय सिद्ध हो जाती है कि प्रस्तुत संस्करण इस पुस्तक का तृतीय सस्करण है । इस सस्करण मे जैसा कि मैंने बहुत पूर्व सोचा या कि हम धर्मप्रेमी सज्जनो को सामायिक की मूल बातो के मौलिक
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy