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________________ २७० सामायिक-सूत्र सभी को सन्मार्ग का उपदेश करते है। ससार के मिथ्यात्व-वन मे भटकते हुए मानव-समूह को सन्मार्ग पर लाकर उसे निराकुल बनाना, अभय-प्रदान करना, एकमात्र तीर्थ कर देवो का ही महान कार्य है। चक्ष र्दय ज्ञाननेत्र के दाता तीर्थ कर भगवान् आँखो के देने वाले है। कितना ही हृष्ट-पुष्ट मनुष्य हो, यदि अॉख नही तो कुछ भी नही। ऑखो के अभाव मे जीवन भार हो जाता है। अधे को आँख मिल जाय, फिर देखिए, कितना पानदित होता है वह । तीर्थ कर भगवान् वस्तुत.अधो को ऑखें देने वाले है । जब जनता के ज्ञान-नेत्रो के समक्ष अनान का जाला छा जाता है, सत्यासत्य का कुछ भी विवेक नही रहता है, तव तीर्थ कर भगवान् ही जनता को जान-नेत्र अर्पण करते हैं, अज्ञान का जाला साफ करते है। पुरानी कहानी है कि एक देवता का मन्दिर था, वडा ही चमत्कार पूर्ण ? वह, आने वाले अन्धो को नेत्र-ज्योति दिया करता था । अन्धे लाठी टेकते पाते और इधर आँखे पाते ही द्वार पर लाठी फेक कर घर चले जाते | तीर्थ कर भगवान् ही वस्तुत ये चमत्कारी देव है। इनके द्वार पर जो भी काम और क्रोध आदि विकारो से दूषित अज्ञानी अन्धा आता है, वह ज्ञान-नेत्र पाकर प्रसन्न होता हुआ लौटता है। चण्डकौशिक आदि ऐसे ही जन्म-जन्मान्तर के अन्धे थे, परन्तु भगवान् के पास आते ही अजान का अन्धकार दूर हो गया, सत्य का प्रकाश जगमगा गया। जान-नेत्र की ज्योति पाते ही सव भ्रान्तियाँ क्षरण-भर मे दूर हो गई । धर्मचक्रवर्ती तीर्थ कर भगवान् धर्म के श्रेष्ठ चक्रवर्ती है, चार दिशा रूप चार गतियो का अन्त करने वाले है । जब देश मे सब पोर अराजकता छा जाती है, तथा छोटे-छोटे राज्यो मे विभक्त हो कर देश की एकता नष्ट हो जाती है, तव चक्रवर्ती का चक्र
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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