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________________ आलोचना-सूत्र १८९ प्रत्येक कार्य के लिए क्षेत्र-विशुद्धि का होना अतीव आवश्यक है। साधारण किसान भी बीज बोने से पहले अपने खेत के झाड-झखाडो को काट-छाँट कर साफ करता है, भूमि को जोत कर उसे कोमल बनाता है, ऊंची-नीची जगह को समतल करता है, तभी धान्य के रूप मे वीज बोने का सुन्दर फल प्राप्त करता है, अन्यथा नही । ऊसर भूमि मे यो ही फेक दिया जाने वाला वीज नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है, पनप नहीं पाता। इसी प्रकार आध्यात्मिक क्षेत्र मे भी सामायिक आदि प्रत्येक पवित्र क्रिया करने से पहले, धर्म-साधना का बीजारोपण करने से पहले, अपनी हृदय-भूमि को विशुद्ध और कोमल बनाना चाहिए। पाप-मल से दूपित हृदय मे सामायिक की, अर्थात् समभाव की पवित्र सुवास कभी नही फैल सकती । पाप-मूच्छित हृदय, सामायिक के द्वारा सहसा तरोताजगी नही पा सकता। इसीलिए, जैन-धर्म मे पद-पद पर हृदय शुद्धि का विधान किया है। और, यह हृदय-शुद्धि आलोचना के द्वारा ही होती है। प्रस्तुत आलोचना-सूत्र का यही महत्त्व है-यह पाठको के ध्यान मे रहना चाहिए। ___ गमनागमन आदि प्रवृत्तियो मे किस प्रकार, किन-किन जीवो को पीडा पहुँच जाती है ? इसका कितनी सूक्ष्मता से वर्णन किया गया है। सूत्रकार की दृष्टि कितनी अधिक पैनी है । देखिए, वह किस प्रकार जरा-जरा-सी भूलो को पकड रही है। एकेन्द्रिय से लेकर पचेन्द्रिय तक सभी सूक्ष्म और स्थूल जीवो के प्रति क्षमा याचना करने का, और हृदय को पश्चात्ताप द्वारा विमल बनाने का बडा ही प्रभावपूर्ण विधान है यह । मानसिक-कोमलता आप कहेगे कि यह भी क्या पाठ है ? कीडे, मकोडे तथा वनस्पति और बीज तक की सूक्ष्म हिंसा का उल्लेख कुछ औचित्य-पूर्ण नही जंचता ? यह भी भला हिसा है ? ___मैं कहूँगा, जरा हृदय को कोमल बना कर उन पामर जीवो की अोर नजर डालिए। आपको पता लगेगा कि उनको भी जीवन की उतनी ही अपेक्षा है, जितनी आपको । जब तक हृदय मे उपेक्षा है, कठोरता है, तब तक उनके जीवन का मूल्य अापकी ऑखो में नहीं चढ सकता, वैसे ही, जैसे कि नर-भक्षी सिंह की आँखो मे आपके जीवन का मूल्य । परन्तु, जो भावुक-हृदय है, दयालु हैं, उनको दूसरे ५
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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