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प्रतिज्ञा पाठ कितनी बार ?
सामायिक ग्रहण करने का प्रतिज्ञा पाठ करेमि भते' है । यह बहुत ही पवित्र और उच्च आदर्शो से भरा हुआ है । सम्पूर्ण जैन साहित्य इसी पाठ की छाया मे फल-फूल कर विस्तृत हुआ है। प्रस्तुत पाठ के उच्चारण करते ही साधक, एक ऐसे नवीन क्षेत्र मे पहुच जाता है, जहाँ राग-द्वेष नही, घृणा- नफरत नही, हिंसा असत्य नही, चोरीव्यभिचार नही, लडाई झगडा नही, स्वार्थ नही, दम्भ नही, प्रत्युत सब ओर दया, क्षमा, नम्रता, सन्तोष, तप, ज्ञान, भगवद्भक्ति, प्रेमसरलता, शिष्टता आदि सद्गुरगो की सुगन्ध ही महकती रहती है । सासारिक वासनाओ का अन्धकार जब छिन्न-भिन्न हो जाता है, तो जीवन का प्रत्येक पहलू ज्ञानालोक से जगमगा उठाता है ।
तीन बार प्रत्यावर्तन
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हाँ, तो सामायिक करते समय यह पाठ कितनी बार पढना चाहिये, यह प्रश्न है, जो आज पाठको के समक्ष विचाने के लिये रखा जा रहा है । श्राजकल सामायिक एक बार के पाठ द्वारा ही ग्रहरण कर ली जाती है । परन्तु यह अधिक औचित्य - पूर्ण नही है । दूसरे पाठो की अपेक्षा इस पाठ मे विशेषता होनी चाहिए । प्रतिज्ञा करते समय हमे अधिक सावधान और जागरूक रहने के लिए प्रतिज्ञा पाठ को तीन वार दुहराना आवश्यक है । मनोविज्ञान का नियम है कि "जब तक प्रतिज्ञा - वाक्य को दूसरे वाक्यो से पृथक् महत्त्व नही दिया जाता, तब