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कि बृहत्स्वयंभू स्तोत्र की प्रभाचन्द्राचार्य विरचित संस्कृत टीका के हिन्दी अनुवाद ग्रन्थ की दुर्लभता हो रही है और मैंने स्वयं भी देखा कि यह भक्तिरस पूर्ण न्याय का एक अनुपम श्राचार्य प्ररणीत प्राग्रन्थ है । यह ग्रन्थ भी इसी के साथ प्रकाशित हो जाय तो संस्कृत के भावों के आनन्द लेने वाले छात्र तथा अन्य जिज्ञासु महानुभाव प्राचार्य समन्तभद्र की कृति से लाभ उठा सकें । एतदर्थ इधर की ओर रुचि प्रकट की । वहुत हर्ष है कि कुकरणवाली के धर्मनिष्ठ, उत्साही महानुभावों ने खूब द्रव्य देकर मेरी अभिलाषा को मूर्तरूप प्रदान किया । अतः इन सभी द्रव्य प्रदाताओं को मेरा सर्व प्रथम शुभाशीर्वाद है ।
पं० विद्याकुमारजी तथा डा० यतीन्द्रकुमारजी ने इन ग्रन्थों के संशोधनादि में बहुत परिश्रम किया वे भी शुभाशीर्वाद के पात्र हैं। स्थानीय श्री उम्मेदमलजी काला सुपुत्र श्री प्रासूलालजी काला ने इस प्रकाशन में पूर्ण सहयोग दिया है अतः इन्हें भी विशेष शुभाशीर्वाद दिये बिना नहीं रह सकता । अधिक क्या कहूं, जिन जिन ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस ग्रन्थ के प्रकाशन में बाधाओं को दूर किया है, मैं सभी को शुभाशीर्वाद देता हूं | जो भक्तिपूर्वक इस ग्रन्थ को केवल प्रालमारी की शोभा नहीं बढाकर स्वाध्याय, चिन्तन करेंगे उन सज्जनों को भी मेरा प्राशीर्वाद है कि वे भी अपनी चंचला लक्ष्मी का इसी प्रकार सदुपयोग करें तथा इस ग्रंथ को सर्व जनों के स्वाध्याय निमित्त श्री मंदिरजी या पुस्तकालय में हो विराजमान करें ताकि सबके लिये यह उपयोगी हो सके।
मनन,
कुकनवाली ता० २०-१०-G8
मुनि विवेकसागर