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________________ [ ४३ । भावार्थ-यद्यपि व्यवहारनयसे शुद्धात्मस्वरूपके रोकनेवाले ज्ञानावर णादिकर्म अपने-अपने कार्यको करते हैं, अर्थात् ज्ञानावरण तो ज्ञानको ढंकता है, दर्शनावरणकर्म दर्शनको आच्छादन करता है, वेदनीय साता असाता उत्पन्न करके अतीन्द्रियसुखको घातता है, मोहनीय सम्यक्त्व तथा चारित्रको रोकता है, आयुकर्म स्थि : शरीरमें रखता है, अविनाशी भावको प्रगट नहीं होने देता, नामकर्म नाना प्रकार गति जाति शरीरादिकको उपजाता हैं, गोत्रकर्म ऊंच नीच गोत्रमें डाल देता है, और अन्तरायकर्म अनन्तवीर्य (बल) को प्रगट नहीं होने देता। इस प्रकार ये कार्यको करते हैं, तो भी शुद्धनिश्चयनयकर आत्माका अनन्तज्ञानादिस्वरूपका इन कर्मोंने न तो नाश किया, और न नया उत्पन्न किया, आत्मा तो जैसा है वैसा ही है । ऐसे अखंड परमात्माका तू वीतरागनिर्विकल्पसमाधिमें स्थिर होकर ध्यानकर । यहां पर यह तात्पर्य है, कि जो जीवपदार्थ कर्मोंसे न हरा गया, न उपजा, किसी दूसरी तरह नहीं किया गया, वही चिदानन्दस्वरूप उपादेय है ॥४८॥ अथ यः कर्मनिवद्धोऽपि कर्मरूपो न भवति कर्मापि तद्रूपं न संभवति तं परमात्मानं भावयेति कथयति कम्म-णिबद्ध वि होइ णवि जो फुडु कम्मु कया वि। कम्मु वि जो ण कया वि. फुड़ सो परमप्पउ भावि ॥४६॥ .:.:. . कर्मनिबद्धोऽपि भवति नैव यः स्फुटं कर्म कदापि । .. .। कर्मापि यो न कदापि स्फुटं तं परमात्मानं भावय ।।४६।। .इसके बाद जो आत्मा कर्मों से अनादिकालका बन्धा हुआ है, तो भी कर्मरूप नहीं होता, और कर्म भी आत्मस्वरूप नहीं होते आत्मा चैतन्य है, कर्म जड़ है, ऐसा जानकर उस परमात्माका तू ध्यानकर, ऐसा कहते हैं-(यः) जो चिदानन्द आत्मा (कर्मनिबद्धोऽपि) ज्ञानावरणादि कर्मोंसे बंधा हुआ होनेपर भी (कदाचिदपि) कभी भी (कर्म नैव स्फुट) कमरूप निश्चयसे नहीं (भवति) होता, (कर्म अपि) और कर्म भी . (यः) जिस परमात्मारूप (कदाचिदपि स्फुट) कभी भी निश्चयकर (न) नहीं होते, (तं) उस पूर्वोक्त लक्षणोंवाले (परमात्मानं) परमात्माको तू (भावय) चिन्तवन कर । . भावार्थ-जो आत्मा अपने शुद्धात्मस्वरूपकी प्राप्तिके अभावसे उत्पन्न किये ज्ञानावरणादि शुभ अशुभ कर्मोंसे व्यवहारनयकर बधा हुआ है, तो भा शुद्ध निश्चयनयसे
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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