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टीकाकार की प्रशस्ति
वृष शाला भी एक है, श्राश्रय जन दातार ।
रघुनन्दन परसाद हैं, धर्म ज्ञान शुभ धार ।। ६ ।।
दास बनारस बुद्धिमय, मक्खनलाल प्रदीन ।
लाल सिपाही प्रेममय, दुर्गादास प्रवीन ।। १० ।।
गव्वी बांकेलालजी, ज्वाला सुन्दरलाल ।
चांद बिहारी भूषणं, शरण धर्म के लाल ॥। ११ ॥
मंत्री जैन सभा करें, बहुत धर्म की सेव ।
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मूलचन्द जिनधर्म प्रिय, लखें तत्त्व बहु भेव ॥१२॥
इत्यादी सार्धामि संग, काल धर्म मय जाय ।
देवकीनन्दन लालका, उपवन बहु सुखदाय ॥१३॥
तहाँ ठहर वृष भावना, हेतु कार्य यह कोन |
समन्तभद्र सूरीकृत, स्तोत्र स्वयंभू लीन ॥ १४ ॥
ताकी हिन्दी वृत्ति रच हुआ परम हित श्रात्म ।
स्याद्वाद चिन्तवन भया, पाया अनुभव श्रात्म ।।१५।।
आश्विन कृष्ण अष्टमी, चौबिस छप्पन वीर ।
ग्रन्थ पूर्ण शुभ यह भया, है प्रताप प्रति बीर ॥ १६ ॥