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________________ १६४ स्वयंभू स्तोत्र टीका का सदा के लिये नाश कर डाला । वास्तव में रागो द्वषो जीव ही संमार में भ्रमण करता है। सारसमुच्चय में कहा है ____रागद्वषमयो जीवः कामक्रोधवशे गतः । लोभमोहमदाविष्टः संसारे संसरत्यसौ ।। भावार्थ - जो जीव रागी द्वषी है, काम व क्रोध के वश है, लोभ व मद से घिरा है वही संसार में भ्रमण किया करता है । पद्धरी छन्द जो पाषी सुभट कषाय घार, ऐसा रिपु मोह अनर्थकार । सम्यक्त्त्व ज्ञान संयय सम्हार. इन शस्त्रन से कीना सहार ।। ६० ॥ उत्थानिका-मोहकर्म के जीत लेने पर क्या हुआ सो कहते हैं कन्दर्पस्योद्धये दर्पस्त्रैलोक्यविजयार्जितः । हे पयामास तं धीरे त्वयि प्रतिहतोदयः ॥६१॥ अन्वयार्थ (कंदर्पस्य) कामदेव का उद्धरः) महा कठिन (दर्पः) अहङ्कार (त्रैलोक्यविजयाजितः) जो तीन लोक के प्राणियों को जीत लेने से पैदा हुआ था सो (त्वयि धीरे) आप परम निश्चल चित्त के पास (प्रतिहतोदयः) उसका सब उदय नाश को प्राप्त होगया आपने (तं) उस कामदेव को (ह्र पयामास) लज्जित कर दिया। भावार्थ कामदेव को इस बात का बड़ा घमण्ड था कि उसने इन्द्र, घरणेन्द्र, चक्रवर्ती सर्व जगत के प्राणियों को अपने आधीन कर लिया। जब यह आपको जीतने के लिये पाया तो आप परम वीतरागी के सामने उसका कुछ भी बल न चला । तव वह महान लज्जित होगया । जिस काम ने सर्व पामर ससारी प्राणियों को वश कर लिया उस काम को आपने परास्त कर दिया। इसलिये हे अरनाथ ! श्राप परम योद्धा व परम ब्रह्मचारी हो । आपकी महिमा श्राश्चर्यकारी है । वास्तव में कामदेव महा अनर्थकारी है । सारसमुच्चय में कहा है चित्त संदूषक: कामम्तथा सद्गतिनाशकः । सवृत्तध्वंसनश्चासौ कामोऽनर्थपरम्परा ॥ १०३ ॥ दोपाणामाकरः कामो गुणानां च विनाशकृत् : पापस्य निजो बन्धुः परापदां चंब सगमः ॥१०४।। पिशाचेनैव कामेन छिद्रितं सकलं जगत् । बभ्रमेति परायत्तं भवाब्धीस निरन्तरम् ।। १०५ ।।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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