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रसका अनुभव करनेके लिये ( तान् अपि ) उन (त्रीन् अपि) तीनों आचार्य, उपाध्याय, साधुओं को भी ( नत्वा) मैं नमस्कार करके परमात्मप्रकाशका व्याख्यान करता हूं ।
विशेष - अनुपचरित अर्थात् जो उपचरित नहीं है, इसीसे अनादि सम्बन्ध है, परन्तु असदुभूत ( मिथ्या) है, ऐसा व्यवहारनयकर द्रव्यकर्म, नोकर्म का संबंध होता है, उससे रहित और अशुद्ध निश्चयनयकरं रागादिका सम्बन्ध है, उससे तथा मतिज्ञानादि विभावगुण के सम्बन्ध से रहित और नर-नारकादि चतुर्गतिरूप विभावपर्यायों से रहित ऐसा जो चिदानन्दचिद्रूप एक अखण्डस्वभाव शुद्धात्मतत्त्व है वही सत्य है | उसीको परमार्थरूप समयसार कहना चाहिये । वही सब प्रकार आराधने योग्य है | उससे जुदी जो परवस्तु है वह सब त्याज्य है । ऐसी दृढ़ प्रतीति चंचलता रहित निर्मल अवगाढ़ परम श्रद्धा है उसको सम्यक्त्व कहते हैं, उसका जो आचरण अर्थात् उस स्वरूप परिणमन वह दर्शनाचार कहा जाता है और उसी निजस्वरूप में संशय - विमोहविभ्रम-रहित जो स्वसंवेदनज्ञानरूप ग्राहकबुद्धि वह सम्यग्ज्ञान हुआ, उसका जो आचरण अर्थात् उसरूप परिणमन वह ज्ञानाचार है, उसी शुद्ध स्वरूप में शुभ-अशुभ समस्त संकल्प विकल्प रहित जो नित्यानन्दमय निजरसका आस्वाद, निश्चल अनुभव, वह सम्यक् चारित्र है, उसका जो आचरण, उसरूप परिणमन, वह चारित्राचार है, उसी परमानन्द स्वरूपमें परद्रव्यकी इच्छाका निरोधकर सहज आनन्दरूप तपश्चरणस्वरूप परिणमन वह तपश्चरणाचार है और उसी शुद्धात्मस्वरूप में अपनी शक्ति को प्रकटकर आचरण परिणमन वह वीर्याचार है । यह निश्चय पंचाचारका लक्षण कहा । अब व्यवहारका लक्षण कहते हैं— निःशंकित को आदि लेकर अष्ट अंगरूप बाह्यदर्शनाचार, शब्द शुद्ध, अर्थ शुद्ध आदि अष्ट प्रकार बाह्य ज्ञानाचार, पंच महाव्रत, पंच समिति, तीन गुप्तिरूप व्यवहार चारित्राचार, अनशनादि बारह तपरूप तपाचार और अपनी शक्ति प्रगटकर मुनिव्रतका आचरण यह व्यवहार वीर्याचार है । यह व्यवहार पंचाचार परम्पराय मोक्षका कारण है, और निर्मल ज्ञान- दर्शनस्वभाव जो शुद्धात्मतत्त्व उसका यथार्थ श्रद्धान, ज्ञान, आचरण तथा परद्रव्यकी इच्छाका निरोध और निजशक्तिका प्रगट करना ऐसा यह निश्चय पंचाचार साक्षात् मुक्तिका कारण है । ऐसे निश्चय व्यवहाररूप पंचाचारोंको आप आचरें और दूसरेको आचरवावें ऐसे आचार्योंको में वन्दता हूँ । पंचास्तिकाय, षट् द्रव्य, सप्त तत्त्व, नवपदार्थ हैं, उनमें निज शुद्ध जीवास्तिकाय, निजशुद्ध जीवद्रव्य, निजशुद्ध जीवतत्त्व, निजशुद्ध
जीवपदार्थ, जो आप