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________________ श्री वीतरागाय नमः श्री स्वामी समन्तभद्राचार्यविरचित स्वयंभू स्तोत्र टीका । प्र ेरणा प्रदाता मुनि श्री विवेक सागर जी द्वारा मंगलाचरण दोहा 1 दिनाथ को नमन कर, सब चौबीस जिनेन्द्र | महावीर को प्ररणमिहू, विवेक सिधु निर्ग्रन्थ संस्कृत स्तुति रचना फरी, समंतभद्र आचार्य । जिन मुखाप्रवासिनि महा, जिनवाणी शिरधाये ॥ यह महा स्तुति गम्भीर है, प्रनुयोगों की द्वार | पढ़े सुमे भषि जीव जो पावे पद निर्धार ॥ प्रथमा दुर्लभ भया, प्रति है मिलती नांहि । तातें भाषा शुद्ध कर, करू प्रकाशित तांहि ॥ जो थे अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी ज्ञान के सागर हो । गुरुदेव त्रैकालिक नमोस्तु ज्ञानसिध्वाचार्यजी । टीकाकार द्वारा मंगलाचररण बंद श्रीजिन प्रादि को, प्रतनाम महावीर । परमातम सर्वज्ञ प्रभु, परम शान्त गम्भीर ॥ गुरु गौतम को सुमरिके, कुंदकुंद गुरु ध्याय । जिनवाणी वंदन करू, भवदषि पार कराय ॥ वर्तमान चौबीस जिन, सम्बन्धी युति सार न्याय विराग सु श्रात्म को, प्रगटावन दुखहार ॥ समन्तभद्र आचार्य ने रची सुमङ्गलदाय । प्रमाचन्द्र टीका करी, संस्कृत में रुचि लाय || बालबोध भाषा करू, स्वपर हेतु सुखकार । तत्व सत्य दिप जाय ज्यों, मिथ्यापथ निरवार || 2 (१) श्री प्रादिनाथ स्तुति स्वयम्भुवा भूतहितेन भूतले, समञ्जसज्ञानविभूतिचक्षुषा । विराजितं येन विधुन्वता तमः क्षपाकरेणेव गुणोत्करैः करैः ||१|| श्रन्वमा - ( स्वयंभुवा) जो श्रपने श्राप दूसरों के उपदेश बिना ही मोक्ष के मार्ग
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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