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________________ २४० ] परमात्मप्रकाश देहको असार जानकर परलोकका बीज करके सार करना चाहिये । जैसे धुनोंका खाया हुआ ईख किसी कामका नहीं है, एक वीजके कामका है, सो उसको बोकर असारसे सार किया जाता है, उसी प्रकार मनुष्य-देह किसी कामका नहीं, परन्तु परलोकका वीजकर असारको सार करना चाहिये । इस देहसे परलोक सुधारना ही श्रेष्ठ है । जैसे घुनसे खाये गये ईखको बोनेसे अनेक ईखोंका लाभ होता है, वैसे ही इस असार शरीरके आधारसे वीतराग परमानन्द शूद्धात्मस्वभावका सम्यक् श्रद्धान ज्ञान आचरणरूप निश्चयरत्नत्रयकी भावनाके बलसे मोक्ष प्राप्त किया जाता है, और निश्चयरत्नमय का साधक जो व्यवहार रत्नत्रय उसकी भावनाके बलसे स्वर्ग मिलता है, तथा परम्परा से मोक्ष होता है । यह मनुष्य शरीर परलोक सुधारने के लिये होवे तभी सार है, नहीं तो सर्वथा असार है ।। १४७।। अथ देहस्याशुचित्वानित्यत्वादिप्रतिपादनरूपेण व्याख्यानं करोति पदकलेन तथाहि उबलि चोप्पडि चिट्ठ करि देहि सु-मिट्टाहार । देहहं सयल णिरत्थ गय जिमु दुज्जणि उवयार ॥१४॥ उद्वर्तय म्रक्षय चेष्टां कुरु देहि सुमृष्टाहारान् । देहस्य सकलं निरथं गतं यथा दुर्जने उपकाराः ॥१४८।। आगे देहको अशुचि अनित्य आदि दिखानेका छह दोहोंमें व्याख्यान करते हैं-(देहस्य) इस देहका (उद्वर्तय) उबटना करो, (म्रक्षय) तैलादिकका मर्दन करो, (चेष्टां कुरु) श्रृंगार आदिसे अनेक प्रकार सजाओ, (सुमृष्टाहारान) अच्छे अच्छे मिष्ट आहार (देहि) देओ, लेकिन (सकलं) ये सब (निरर्थ गतं) यत्न व्यर्थ हैं, (यया) जमे (दुर्जने) दुर्जनोंका (उपकाराः) उपकार करना वृथा है। भावार्थ-जैसे दुर्जनपर अनेक उपकार करो वे सब वृथा जाते है, दुर्जन कुछ फायदा नहीं, उसी तरह शरीरके अनेक यत्न करो, इसको अनेक तरहसे पोषण करो परन्तु यह अपना नहीं हो सकता। इसलिये यही सार है कि इसको अधिक पुष्ट नहीं करना । कुछ थोड़ामा ग्रासादि देकर स्थिर करके मोक्ष साधन मारना सात धातुमयी यह अनि शरीर है, इमन पवित्र गडात्मम्बरका आराधना करना । इस महा निगुण शरीमे केवल मानादि गुणों का समूह साधना चाहिये । यह और
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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