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श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी
बड़ा शौक था। सम्मेदशिखरजी की यात्रा आपने कई बार
आपको तीर्थयात्रा का
की थी | जैनवडी तथा मूडबद्री की यात्रा भी आपने की थी ।
आगस्त सन् १९५१ में अवागढ़ में आपका स्वर्गवास हो गया । आपके देहावसान से समस्त समाज को एक अभाव-सा प्रतीत हुआ ।
आपकी श्रमती श्रीदेवी जैन भी सुन्दर विचार धारा युक्त महिलारत्न थी । इनके विचार सदैव आपके अनुकूल रहे। आपके कमलकुमार, श्रवणकुमार, धन्यकुमार, प्रद्युन्नकुमार तथा नन्नीदेवी और ज्ञानदेवी आदि सुपुत्र एवं सुपुत्रियाँ हैं। यह सब पूर्ण रूप से स्वधर्मानुयायी हैं ।
स्व० श्री रामस्वरूपजी जैन, कोटकी
आप स्वर्गीय श्री सुखलालजी जैन के सुपुत्र थे । आपका जन्म सन् १८५६ में हुआ था । आपकी शिक्षा केवल चार कक्षा तक ही हुई थी, किन्तु आपका धर्म-ज्ञान एक विद्वान् के तुल्य था । आपके धर्म सम्बन्धी उपदेशों से तथा साहित्य प्रसार से समाज को महान् लाभ हुआ है । धर्म के विषय में आपकी जानकारी असीम थी । आपने कोटकी के मन्दिरली मैं एक प्रतिमा विराजमान कराने में सबसे अधिक योग दिया था। आप बैलगाड़ियों द्वारा श्री सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखरजी की संघ ले गये जो छ मास में वापिस आया। वहीं पहुँचकर रथ यात्रा महोत्सव कराया तथा प्रीतिभोज भी दिया था। आपको यात्रिओं में बड़ा आनन्द मिलता था । यात्रा में आपके साथ पूरा संघ चलता था। आप तीर्थ स्थानों में पूरे नियम एवं मर्यादाओं का पालन करते थे। आपकी प्रत्येक तीर्थयात्रा धर्म-प्रचार का सुअवसर होती थी ।
आप डिस्ट्रिक बोर्ड आगरा के सदस्य भी थे। आपको एक बार मुखिया भी चुना गया, किन्तु आपने शीघ्र ही त्यागपत्र दे दिया । आपके द्वारा धर्म-सेवा के साथ ही साथ समाज-सेवा भी हो चुकी हैं। समाज का उत्थान एवं निर्माण यही विषय आपको सर्वभावेन आपने प्रसन्न रखता था । आपने बचपन में ही नियमित पूजन स्वाध्याय अपना लिया था। जैनविद्री, मूढविद्री की यात्रायें भी की थीं। आप धार्मिक स्वभाव युक्त धनधान्य पूर्ण जीवन के समाज के आदर्श रत्न थे ।
जून १९४१ में आपका स्वर्गवास हो गया। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती लाडोदेवी भी आपके साथ प्रत्येक तीर्थ पर जाती थीं । यह धार्मिक स्वभाव की सुलक्षणा महिला थी । श्री बाबूलालजी, श्री गुलजारीलालजी, श्री मुन्शीलालजी आपके तीनों ही पुत्र समाज के अग्रगण्य पुरुष माने जाते है ।