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जैनतत्त्वादर्श
१०७० ] भगवन्त के गर्भगत हुये माता ने अरिष्ट रत्नमय बड़ा-मोटा, नेमि - चक्रधारा आकाश में उत्पद्यमान स्वप्न में देखा, तिस कारण से अरिष्टनेमि नाम किया ।
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२३ - " स्पृशति ज्ञानेन सर्वभावानिति पार्श्व "स्पर्शजाणे सब पदार्थो को ज्ञान करी सो पार्श्व । तथा "गर्भस्थे जनन्या निशि शयनीयस्थयाऽन्धकारे सर्पो दृष्ट इति गर्भानुभावोऽयमिति मत्वा पश्यतीति निरुक्तात्पार्श्वः, पार्श्वोऽस्य वैयावृत्त्यकरो यक्षस्तस्य नाथः पार्श्वनाथः भीमो भीमसेन इति न्यायाद्वा पार्श्वः” – भगवन्त के गर्भ में स्थित होने से निशि - रात्रि में शय्या ऊपर बैठी माता ने अन्धेरे में जाता हुवा सर्प देखा, माता पिता ने विचारा कि ए गर्भ का प्रभाव है, अथवा देखे सो पार्श्व, अथवा पार्श्व नामा वैयावृत्त्य करनहारा देवता, तिसका जो नाथसो पार्श्वनाथ, अथवा भीम और भीमसेन इस न्याय की तरें पार्श्वनाथ ही पार्श्व है ।
२४ - "विशेषेण ईरयति प्रेरयति कर्माणीति वीरः"विशेष करके प्रेरे जो कर्मो को सो वीर, बड़े उग्र परीषह, उपसर्ग सहने से देवता ने जिसका नाम महावीर किया । तथा माता पिता का दिया नाम *वर्द्धमान है ।
* जन्म होने के अनंतर जो ज्ञानाद के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुआ सो वर्धमान तथा भगवान् के गर्भ में आने के बाद ज्ञातकुल म धन धान्यादि की वृद्धि हुई अत वर्धमान नाम रक्खा । तथा - " उत्पत्तेरारभ्य ज्ञानादिभिर्वर्धत इति वर्धमानः यद्वा गर्भस्थे भगवति - ज्ञातकुल धनधान्योदिभि र्वर्धत इति वर्धमानः” । [अभि० चि० का० १, पृ० १२]