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प्रथम परिच्छेद माता मरुदेवी ने चौदह स्वप्न की आदि में बैल का स्वप्न देखा था, तिस कारण से ऋषभ ऐसा नाम दिया। ऐसे ही सर्व तीर्थङ्करों का प्रथम सामान्यार्थ और दूसरा विशेषार्थ जानना।
२-"परीषहादिभिर्न जितः इत्यजितः"-बावीस परीषह, आदि शब्द से चार + कपाय, आठ : कर्म, चार प्रकार का उपसर्ग-इनों करके जो न जीत्या गया सो अजित, “यद्वा गर्भस्थेऽस्मिन् द्यते राज्ञा जननी न जितेत्यजितः"- अथवा जव भगवान गर्भ में थे तब जूआ खेलता हुआ राजा रानी को न जीत सका, इस हेतु से अजित नाम दिया।
३-"शं सुखं भवत्यस्मिन् स्तुते सः शम्भवः" शं नाम सुख का है. सुख होवे जिसकी स्तुति करने पर सो शम्भव, "यद्वा गर्भगतेप्यस्मिन्नभ्यधिकसस्यसंभवात् सम्भवोपि"अथवा भगवान जब गर्भ में थे तव पृथिवी में अधिक धान्य
. .. भुवा. २ पिपासा, ३ शोत, ४ उप्ण, ५ दंशमशकडाम और मच्छर ६ नग्नत्व, ७ अरति, ८ स्त्री, ६ चर्या, १०. निषद्या, ११. शय्या, १२. आक्रोश, १३ वध, १४ याचना, १५. अलाभ, १६ रोग, १७ तृणस्पर्श, १८. मल, १९ सत्कारपुरस्कार, २०. प्रज्ञा, २१ अज्ञान, २२. अदर्शन । विशेष स्वरूप के लिये देखो परि० नं. १-। + १. क्रोध, २ मान, ३ माया, ४. लोभ ।
१. नानावरणीय, २. दर्शनावरणीय, ३ वेदनीय, ४. मोहनीय, ५. आयु, ६. नाम, ७. गोत्र, ८. अन्तराय ।
१. देवकृत, २. मनुष्यकृत, ३. तिर्यञ्चकृत, ४ कर्मजनित ।