________________ जैनतत्त्वादर्श संमोह संदेह, भ्रम सुखे सुखे सुख से संवित्ति ज्ञान सुज्ञ विद्वान् संस्तारक बिछौना सेती से सान्त अन्त वाला सो वह, अतः सान्निध्य समीपता, उपस्थिति | सोई वही सामायिक रागद्वेष को छोड | सोलां प० सोलह कर समभाव-मध्यस्थ भाव मे | स्थाणु ढूंठ वृक्ष, स्तंभ रहना, ऐसे भाव की प्राप्ति के लिये | स्वकपोलकल्पित मनघडंत, की जाने वाली आवश्यक क्रिया / मनमाना सार सकता है पूर्ण कर सकता है | स्वकृतांत अपना सिद्धान्त सिद्धिसौध मोक्षस्थान स्वचक्र अपना गष्ट्र सुकृत पुण्य, अच्छे कार्य स्वसंवेदन प्रात्मविषयक सुखशीलिया सुखप्रिय अनुभव-ज्ञान हलुवे हलुवे धोर धीरे हाट दुकान हाड़ ही हाथफेरी चालाकी हिम बर्फ | हेठ पं० नीच हेयोपादेय छोडने और ग्रहण करने योग्य होती भई हुई होवे है होता है