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जैनतत्त्वादर्श
होने से क्षय होने से क्या परमेश्वर उपभोग करता है ? उत्तर-पूर्वोक्त पांचों विघ्नों के क्षय होने से भगवन्त में पूर्ण पांच शक्तियां प्रगट होती हैं । जैसे - निर्मल चक्षु मैं पलादिक बांधकों के नष्ट होने से देखने की शक्ति प्रगट होजाती है, चाहे देखे चाहे न देखे, परन्तु शक्ति विद्यमान है । जो पांच शक्तियों से रहित होगा वह परमेश्वर कैसे हो सकता है ?
छठा दूषण " हास्य" है जो हँसना आता है सो अपूर्व वस्तु के देखने से वा अपूर्व वस्तु के सुनने से वा अपूर्व आश्चर्य के अनुभव के स्मरण से आता है । इत्यादिक हास्य के निमित्त कारण हैं तथा हास्यरूप मोहकर्म की प्रकृति उपादान कारण है । सो ए दोनों ही कारण अर्हन्त भगवन्त में नहीं हैं । प्रथम निमित्त कारण का संभव कैसे होवे ? क्योंकि अर्हन्त भगवन्त सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हैं, उनके ज्ञान में कोई अपूर्व ऐसी वस्तु नहीं जिसके देखे सुने, अनुभवे आश्चर्य होवे । इसमें कोई भी हास्य का निमित्त कारण नही । और मोह कर्म तो अर्हन्त भगवन्त ने सर्वथा क्षय कर दिया है, सो उपादान कारण क्योंकंर संभवे ? इस हेतु से अर्हन्त में हास्यरूप दूषण नहीं । और जो हसनशील होंगा सो अवश्य असर्वज्ञ, असर्वदर्शी और मोहकरी संयुक्त होगा । सो परमेश्वर कैसे होवे ?
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सातवां दूषण "रति" है - जिसकी प्रीति पदार्थों के ऊपर होगी सो अवश्य सुन्दर शब्द, रूप, गन्ध, रस, स्पर्श स्त्री