________________
'४४
"जैनतत्त्वादर्श
1
निकल जावे, तिस के पीछे शिकारी बंदूक प्रमुख शस्त्र' लिये चला आता है, उन को मारने के वास्ते. वो शिकारी साधु • को पूछे कि तुमने अमुक जीव जाते देखे हैं ? तब साधु मौन कर जावे । जे कर मौन करने पर भी पीछा न छोड़े, और सांधु को मारे, तब साधु कह देवे, कि मैंने नहीं देखे । यद्यपि यह द्रव्य से झूठ है, परन्तु भाव से झूठ नहीं, क्योंकि जो कोई इंद्रियों की विषय तृप्ति के वास्ते तथा अपने लोभ के वास्ते झूठ वोले, तब भावतः झूठ होवे । परंतु यह तो जीवों की दया के वास्ते झूठ बोला है । अतः वास्तव में यह झूठ नहीं है । इसी तरे और जगे भी समझ लेना । यह प्रथम भंग ।
2
तथा दूसरा भंग कोई पुरुष मुख से तो कुछ नहीं बोलता परन्तु दूसरों के ठगने के वास्ते मन में अनेक विकल्प करता है, यह दूसरा भंग । तथा तीसरे भंग में तो द्रव्य से भी झूठ बोलता है, अरु भाव से भी झूठ बोलता है |तिस का अभिप्राय भी महा छल कपट करने का है । क्योंकि मुख से भी झूठ बोलता है, अरु चित्त में भी दुष्टता है, यह तीसरा भंग, तथा चौथा भंग तो पूर्ववत् शून्य है ।
M
अथ चोरी के यही चार भंग कहते हैं । तहां प्रथम भंग 'मैं जैसे कोई स्त्री शीलवती है, और कोई दुष्ट राजा उस का शील भंग करना चाहता है, तब कोई धर्मज्ञ आदि पुरुष रात्रि में अथवा दिन में उस स्त्री के शील की रक्षा के