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जैनतत्त्वादर्श समान है, और एक वर्ष तक रहता है । तथा जिस के उदय से जीव को सर्व विरतिपना न आवे, सो प्रत्याख्यानावरण कषाय है । उस में क्रोध रेणु की रेखा समान, मान काष्ठ के स्तंभ समान, माया गौ के मूत्र के समान, लोभ खंजन के रंग समान है । इस की चार मास तक रहने की स्थिति है। संज्वलन रूप जो चार कषाय हैं उन में क्रोध, पानी की लकीर के समान, मान तिनिसलता के स्तम्भ समान, माया बांस की छिल्ल के समान, लोभ हरिद्रा के रंग के समान है । यह चारों एक पक्ष की स्थिति वाले हैं । यह सोलां कषाय का स्वरूप लिखा । अथ नव नोकषाय कहते हैं:स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद, हास्य, रति, अरति,
शोक, भय, जुगुप्सा, यह नव नोकषाय मोहनव नोकषाय नीय की प्रकृति है । नो शब्द सहकारी अर्थ
में है। कषायों के सहचारी जो होवें, उन को नोकषाय कहते हैं । अव इन नव प्रकृति का स्वरूप लिखते हैं:-१. जिस के उदय से स्त्री पुरुष की अभिलाषा करती है, सो स्त्रीवेद, जैसे पित्त के उदय से मीठी वस्तु की अभिलाषा होती है । फुफक अग्नि के समान स्त्रीवेद का उदय है। जैसे फुफक अग्नि फोलने से वृद्धिमान् होती है, ऐसे ही स्त्री के स्तन कक्षादि के स्पर्श करने से स्त्रीवेद का प्रवल उदय होता है । २. तथा जिस के उदय से पुरुष, स्त्री की अभिलाषा करता है, सो पुरुपवेद जानना । जैसे कफ