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जैनतत्त्वादर्श
ज्ञान को अतीत अनागत पदार्थों का जानने वाला कहा है । परन्तु अतीत पदार्थ तो नष्ट हो गये हैं, तथा अनागत पदार्थ उत्पन्न ही नहीं हुये हैं । इस वास्ते अतीत अनागत पदार्थ ज्ञान के कारण नहीं हो सकते हैं । तत्र अकारण को योगी प्रत्यक्ष का विषय कहना विरोधो क्यों नहीं ?
३. ऐसे ही साध्य साधन की व्याप्ति के ग्राहक - ग्रहण कराने वाले ज्ञान को, कारणता का प्रभाव होने पर भी त्रिकालगत अर्थ का विषय कहने वा मानने वाले को क्यों नहीं पूर्वापर व्याघात होगा ? क्योंकि कारण ही को प्रमाण का विषय माना है, अकारण को नहीं ।
४. तथा पदार्थ मात्र को क्षणविनाशी अंगीकार करने में जिन का भिन्न भिन्न काल है, ऐसे अन्वयव्यतिरेक की प्रतिपत्ति संभव नहीं होती, तब फिर साध्य साधनों के त्रिकाल विषय व्याप्ति ग्रहण को मानने वाले के मत में पूर्वापर व्याहति क्यों नहीं ?
५. तथा सर्व पदार्थों को क्षणक्षयी मान कर भी पीछे से बुद्ध ने ऐसे कहा है कि:
इत एकनवते कल्पे, शक्त्या मे पुरुषो हतः । तेन कर्मविपाकेन पादे विद्धोऽस्मि भिक्षवः ॥ [ शा० स०, स्त० ४ श्लो० १२४ ]