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जैनतत्त्वादर्श जानना । कोई एक आचार्य, तपकुशील के स्थान में लिंगकुशोल कहते हैं । यह द प्रकार के निग्रंथ पांचवें पारे के अन्त तक रहेंगे।
इति श्री तपागछीयमुनि श्री बुद्धिविजय शिष्य मुनि आनन्दविजय-आत्मारामविरचते जनतत्त्वाद”
तृतीयः परिच्छेदः संपूर्णः
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