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तृतीय परिच्छेद
नहीं हैं, अरु यथार्थ पालते नहीं हैं । प्रथम तो उन शास्त्रों के जो उपदेशक हैं, वे ही कामाग्नि में प्रज्वलित थे, यह वात सर्व सुज्ञ जनों को विज्ञात है । इस वास्ते प्रर्हत भगवन्त ही सत्यार्थ के उपदेशक हैं । तथा बड़े २ मदझर हाथियों की घटा संयुक्त जो राज्य का पावना, धौर सर्व जनों को आनन्द देने वाली संपदा का पावना, तथा जो चन्द्रमा की तरे निर्मल गुणों के समूह को पावना, अरु उत्कृष्ट सौभाग्य का विस्तार पावना, यह सर्व धर्म ही का प्रभाव है । तथा समुद्र जो पृथिवी को अपनी कल्लोलों से वहाता नहीं है, तथा मेघ जो सर्व पृथिवी को रेलपेल नहीं करता, अरु चन्द्रमा, 'सूर्य जो उदय होते हैं, सर्व अन्धकार का विच्छेद करते हैं, सो सर्व जयवन्न धर्म का ही प्रभाव है । जिस का भाई नहीं, जिस का मित्र नहीं, जिस रोगी का कोई वैद्य नहीं, जिस के पास धन नहीं, जिस का कोई नाथ नहीं, जिस में - कोई गुण नहीं, उन सर्व का भाई, मित्र, वैद्य, धन, नाथ, गुणों का निधान धर्म है । तथा यह जो अर्हत का कथन किया हुआ 'धर्म है, सो महापथ्य है, ऐसे जो भव्यजीव मन में ध्यावे, सो धर्म में दृढतर होवे । एक ही निर्मल धर्म भावना को निर-न्तर जी - जीव- मन में ध्यावे, सो भव्य प्रशेष पाप कर्म नाश
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- करके अनेक जीवों को उपदेश द्वारा सुखी करके परम पद
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- को प्राप्त होता है, तो फिर जो वारां ही भावना को. भावे, तिस को परमपद की प्राप्ति होने में क्या आश्चर्य है ?- यह
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