________________
રરર
जैनतत्त्वादर्श उत्तरपक्षः-यह भो तुमारा कहना असत् है, क्योंकि जो पुरुष मात्र रूप अद्वैततत्त्व होवे तव तो यह जो दिखलाई देता हैकोई सुखी, कोई दुःखी, ए सव परमार्थसे असत् हो जावेंगे। जव ऐसे होगा तब तो-"प्रमाणतोऽधिगम्य संसारनैर्गुण्यं तद्विमुखया प्रज्ञया तदुच्छेदाय प्रवृत्तिरित्यादि"-संसार का निर्गुणपना प्रमाण से जान कर उस से विमुख बुद्धि हो करके, तिस संसार के उच्छेद के ताई प्रवृत्ति करे, यह जो कहना है, सो आकाश के फूल की सुगन्धि का वर्णन करने सरीखा हो जावेगा । जब कि अद्वैत रूप ही तत्व है, तब नरकादि भवभ्रमण रूप संसार कहां रहा ? जिस को कि निर्गुण जान कर उच्छेद करने की प्रवृत्ति का उपदेश है।
पूर्वपक्षः-तत्त्वतः पुरुष अद्वैत मात्र ही है । अरु यह संसार जो सदा सर्व जीवों को प्रतिभासित हो रहा है, सो चित्राम की स्त्री के अङ्गोपांग जैसे ऊंचे नीचे प्रतीत होते हैं, तैसे प्रतीत होता है । अर्थात् सब चित्राम की स्त्री के अङ्गोपांगों की ऊंचनीचता की तरे भ्रांतिरूप है वा भ्रांतिजन्य है।
उत्तरपक्षः-यह जो तुमारा कहना है सो असत् है, इस वात में कोई वास्तविक प्रमाण नहीं है। जेकर अद्वैत सिद्ध करने के वास्ते कोई पृथग्भूत प्रमाण मानोगे, तब तो द्वैतापत्ति होगी, क्योंकि प्रमाण के बिना किसी का भी मत नहीं सिद्ध होता । जेकर प्रमाण के बिना ही सिद्ध मानोगे तव तो सर्व वादी अपने अपने अभिमत को सिद्ध कर लेवेंगे।