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________________ जैनतत्त्वादर्श जिसको वैर विरोध लगा हुवा है सो परमेश्वर नहीं हो सकता I है । जो ढाल वा खड्ग रक्खेगा वह भय करी अवश्य संयुक्त होगा अरु जो थाप ही भय संयुक्त है तो उसकी सेवा करने से हम निर्भय कैसे हो सकते हैं ? इस हेतु से द्वेष संयुक्त को कौन बुद्धिमान परमेश्वर कह सकता है ? परमेश्वर जो है सो तो वीतराग है अरु जो राग द्वेष करी संयुक्त है सो परमेश्वर या सुदेव नहीं किन्तु कुदेव है । ७८ तथा जिसके हाथ में जपमाला है, सो सर्वज्ञ है । क्योंकि यह असर्वज्ञता का चिन्ह है । जेकर सर्वज्ञ होता तो माला के मरणकों विना भी जपकी संख्या कर सकता । अरु जो जप को करता है, सो भी अपने से उच्चका करता है; तो परमेश्वर से उच्च कौन है जिसका वो जप करता है ? इस हेतु से जो माला से जप करता है सो देव नहीं है । तथा जो शरीर को भस्म लगाता है, और धूनी तापता है, नंगा होकर कुचेष्टा करता है, भांग, अफीम, धतूरा, मदिरा प्रमुख पीता है तथा मांसादि अशुद्ध आहार करता है; वा हस्ती, ऊंट, बैल, गर्दभ प्रमुख की सवारी करता है सोभी कुदेव है । क्योंकि जो शरीर को भस्म लगाता है, अरु जो धूनी तापता है सो किसी वस्तु की इच्छा वाला है । सो जिसका अभी तक मनोरथ पूरा नहीं हुआ सो परमेश्वर नहीं वो तो कुदेव है । अरु जो नशे, अमल की चीजें खाता पीता है, सो तो नशे के अमल में आनन्द और हर्ष ढूंढता है, परन्तु परमेश्वर तो
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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