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जैनतत्त्वादर्श
जिसको वैर विरोध लगा हुवा है सो परमेश्वर नहीं हो सकता
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है । जो ढाल वा खड्ग रक्खेगा वह भय करी अवश्य संयुक्त होगा अरु जो थाप ही भय संयुक्त है तो उसकी सेवा करने से हम निर्भय कैसे हो सकते हैं ? इस हेतु से द्वेष संयुक्त को कौन बुद्धिमान परमेश्वर कह सकता है ? परमेश्वर जो है सो तो वीतराग है अरु जो राग द्वेष करी संयुक्त है सो परमेश्वर या सुदेव नहीं किन्तु कुदेव है ।
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तथा जिसके हाथ में जपमाला है, सो सर्वज्ञ है । क्योंकि यह असर्वज्ञता का चिन्ह है । जेकर सर्वज्ञ होता तो माला के मरणकों विना भी जपकी संख्या कर सकता । अरु जो जप को करता है, सो भी अपने से उच्चका करता है; तो परमेश्वर से उच्च कौन है जिसका वो जप करता है ? इस हेतु से जो माला से जप करता है सो देव नहीं है । तथा जो शरीर को भस्म लगाता है, और धूनी तापता है, नंगा होकर कुचेष्टा करता है, भांग, अफीम, धतूरा, मदिरा प्रमुख पीता है तथा मांसादि अशुद्ध आहार करता है; वा हस्ती, ऊंट, बैल, गर्दभ प्रमुख की सवारी करता है सोभी कुदेव है । क्योंकि जो शरीर को भस्म लगाता है, अरु जो धूनी तापता है सो किसी वस्तु की इच्छा वाला है । सो जिसका अभी तक मनोरथ पूरा नहीं हुआ सो परमेश्वर नहीं वो तो कुदेव है । अरु जो नशे, अमल की चीजें खाता पीता है, सो तो नशे के अमल में आनन्द और हर्ष ढूंढता है, परन्तु परमेश्वर तो