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-घट एक हैं । इस ही प्रकार पटत्वसामान्यको अपेक्षासे समस्तपट एक हैं, तथा जीवत्यसामान्यकी अपेक्षासे समस्त जीव एक हैं । और . इस ही प्रकार पृथक्त्वगुण भी समस्त पदार्थोंमें रहनेवाला है, अन्यथा • समस्त पदार्थों में ' यह भिन्न है ' ' यह भिन्न है' ऐसा ज्ञान नहीं हो सकता । इसलिये पृथक्वसामान्यकी अपेक्षासे समस्त पदार्थ एक हैं । यदि पृथक्वसामान्यकी अपेक्षासे भी सब पदार्थो को एक नहीं मानोगे, भिन्न भिन्न मानोगे तो, पृथक्त्व यह उनका गुण ही नहीं हो सकता। क्योंकि यह गुण अनेक पदार्थोंमें रहनेवाला है । परन्तु · पृथक्त्वगुणकी अपेक्षा सबको भिन्न भिन्न माननेवालेके पृथक्त्वगुण अनेक पदार्थस्थ नहीं हो सकता, किन्तु भिन्न भिन्न पदार्थका भिन्न भिन्न पृथक्त्वगुण ठहरेगा और ऐसा होनेपर उस गुणके अनेकताका प्रसंग आत्रेगा । किन्तु सामान्यधर्म एक होकर अनेक में रहनेवाला है, इसलिये पृथक्त्व सामान्यकी अपेक्षासे समस्त पदार्थ एक हैं । अथवा भेदएकान्तपक्षमें किसी भी प्रकारसे एकता न होनेसे सन्तान (अपने सामान्य धर्मको विना छोड़े उत्तरोत्तरक्षणमें होनेवाले परिणामको - सन्तान कहते हैं, जैसे गोरसके दूध दही, छांछ, घी सन्तान हैं । ) समुदाय ( युगपत् उत्पत्तिविनाशवाले रूपरसादिक सहभावी धर्मोंके नियमसे एकत्र अबस्थानको समुदाय कहते हैं ), घटपटादि पदार्थके पुल आदिकी अपेक्षासे साधर्म्य ( सदृशता ) और प्रेत्यभाव ( एक आणीका मरणके पश्चात् दूसरी गतिमें उत्पाद ) ये एक भी नहीं वन सकते ।
अथवा यदि सत्स्वरूपसे भी ज्ञान ज्ञेयसे भिन्न है, तो दोनोंके अभावका प्रसंग आवेगा । क्योंकि ज्ञानका विषय होनेसे ज्ञानके होनेपर ही ज्ञेय हो सकता है, तथा ज्ञेयके होनेपर ही ज्ञान हो