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________________ [ ८८] भावसंबंधीपनेसे नहीं है और इस प्रकार स्यादस्ति, स्यान्नास्ति; ये दो वाक्य सिद्ध हुए. यदि " स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावकी अपेक्षासे अस्तित्व है, परद्रव्यक्षेत्रकालभावकी अपेक्षासे नास्तित्व है" ऐसा नियम नहीं मानोगे तो घट घटही नहीं होसक्ता । क्योंकि ऐसा नियम न माननेसे उस घटका किसी नियमित द्रव्यक्षेत्रकालभावसे सम्बन्धही नहीं ठहरेगा और. ऐसी अवस्थामें आकाशके पुष्पसमान अभावस्वरूपका प्रसंग आवेगा, अथवा जब घटका अनियमित द्रव्यक्षेत्रकालभावसे सम्बन्ध है तो सर्वथा भावखरूप होनेसे, वह सामान्य पदार्थ हुआ घट नहीं होसक्ता, जैसे महासामान्य अनियत द्रव्यादिसे संबंधित होनेके कारण सामान्य पदार्थ है उसही प्रकार घटभी सामान्यरूप ठहरेगा घट नहीं होसक्ता, उसका खुलासा इस प्रकार है कि, जैसे यह घट द्रव्यकी अपेक्षासे पृथ्वीपनेसे है उसही प्रकार जलादिकपनेसेभी होय तो यह घटही नहीं ठहरेगा । क्योंकि इस प्रकार द्रव्यके अनियमसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, जीव आदि अनेक द्रव्यखरूप होनेका प्रसंग आवेगा. तथा जैसे इस क्षेत्रस्थपनेसे है उसही प्रकार अनियत अन्यसमस्तक्षेत्रस्थपनेसेभी होय तो यह घटही नहीं ठहरेगा क्योंकि आकाशके समान सर्वत्र सद्भावका प्रसंग आवेगा । अथवा जैसे वर्तमानघटकालकी अपेक्षासे है उसही प्रकार अतीत पिंडादिकाल, अथवा अनागतकपालादिकालकी अपेक्षासेभी हो तो वह घटही नहीं ठहरेगा, क्योंकि मृत्तिकाकी तरह सर्वकालसे संबंधका प्रसंग आवेगा, . अथवा जैसे इस क्षेत्रकालके संबंधीपनेसे हमारे प्रत्यक्ष ज्ञानका विषय है उसही प्रकार अतीत अनागतकाल तथा अन्यदेशसंबंधीपनेसभी हमारे प्रत्यक्षके विषयपनेका प्रसंग आवेगा अथवा जैसे वर्तमानक्षेत्रकालमें जलधारण कर रहा है उसही प्रकार अन्यक्षेत्रकालमेंभी
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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